Monday, October 27, 2008

रिश्ते को नयी ज़मीन देती है -दीपावली

दीवाली का त्योहार ऐसी उमंग लेकर आता है कि क्या गरीब क्या अमीर सभी इसमें डूब जाते है । इसके आगमन के साथ ही उजाले और खुशियों का समेटे हुए लक्ष्मी का आगमन हर दहलीज पर शुरू हो जाता है । पांच दिनो तक चलनेवाला यह महोत्सव हर धर और गली को रौशन कर डालता है । सच मानो तो रिश्तो को नयी जमीन देती है -दीवाली । नही तो शहरी संस्कृति में मिलना-जुलना आपसी-भाईचारा कहां शेष रह गयी है । निडा फाजली कहते है कि पहिये पर चढ़ चुके है ,घिसे जा रहे है हम । यही नज्म शहरी लोगो पर लागू होता है । महानगरो में ईसानी जीवन कुछ इसी तरह आगे बढ़ता है सुवह की पहली किरण के साथ ही काम पर निकलने का सिलसिला शुरू होता है ,दिन भर आंफिसो में काम रने की मारामारी और शाम को घर लौटने की जल्दी । ईंसान महानगरो में इतना मशीनी हो गया है कि उसे अपनो से मिलने का समय नही है । आपसी रिश्तो को निभाना भी कठिन होता जा रहा है । एसएमएस के जरिये ही वह अपने दोस्तो से मिलता है ,रिश्तेदारो से बातचीत करता है और थेक्स लिखकर अपना फजॆ पूरा करता है । लेकिन दीपावली एक एसा उत्सव है जो शहरी जीवन में भी लोगो के बीच खुशियां और चैन के लिए समय दे देता है । धनतेरस से शरू होने वाला यह भैया दूज के दिन जाकर समाप्त होता है । लेकिन शहरो में इतनी जगमगाहट के बावजूद गांवो की दीवाली का आनंद नही आ पाता है । गांव की गलियो में पटाखे छोड़ना और नुक्कड़ो पर दोस्तो के साथ चुहलवाजी करना आज भी याद आता है । पटाखो की सजी दुकानो पर हमलोग अपने मित्रो के साथ घंटो खड़े रहते थे और सोचते रहते थे विचार फैलाते रहते थे कि ये पटाखा इस बार खरीदना है । दीप जलाने के लिए दिये और मोमबत्ती को तैयार लिये बैठे रहते थे कि कब दिये जलाने का वक्त आएगा । उस दिन का याद कर आज भी दिल ख्याली पोलाव उमरने लगता है और गांव की याद तरोताजा हो जाती है । दीवाली आए और हर धर में खुशियां फैलाये यही कामना है ।

Saturday, October 18, 2008

यही बाजांर है

जेट एयरवेज कमॆचारियो के निकाले जाने से बाजार के लोगो के ही प्राण पखेरू उड़ गए । शायद किसी ने सोचा नही होगा कि ऐसी स्थिति का सामना जेट एयरवेज के कमॆचारियो को करना पड़ेगा । बाजार के पैरोकार ही बाजार में भीख मांगते नजर आए । कल तक लोगो को पैसे की कीमत और अपने मांडलिंग के जरिए आम लोगो को लुभाने वाले ये कमॆचारी इस कदर अपनी दलील देते नजर आए । ऐसा पहले कभी सोचा नही गया था । एक क्षण में ही पता चल गया कि बाजार क्या होता है । खैर अब भारतीय भिखारियो को भीख मांगने में शमॆ महसूस नही होगी । दरअसल आथिॆक मंदी की मार से कोई अछूता नही है । समाजवाद का धुर-विरोधी अमेरिका समाजवाद की गोद में जाने को तैयार है । शायद यह समाजवाद की जीत भी है । कल तक निजीकरण का हवाला देने वाला अमेरिका बाजार के विफल होने के बाद सरकार की शरण में आ गिरा है । अब अमेरिका के अनेक वित्तीय संस्थानो में बाजार का पैसा नही बल्कि सरकार का पैसा लगा होगा । यानी अथॆव्यवस्था को नियंत्रित करने वाली उंचाईयों पर बाजार का नही सरकार का कब्जा होगा । औऱ यही तो समाजवादी व्यवस्था में होता है । आज स्थिति यह है कि जो अथॆव्यवस्ता पर ज्यादा आधारित है वह उतना ही ज्यादा संकट में है । जिसका असर न केवल अमेरिका बल्कि भारत में भी दिख रहा है । भारत का तकदीर इस मायने में अच्छा है कि यहां पूणॆ ऱूप से निजीकरण सफल नही हो पाया है बरना जेट एयरवेज जैसे कई कम्पनियो के कमॆचारी सड़क पर गुहार लगाते मिलते । औऱ अपनी चमक पर स्व्यं पदाॆ डालने की कोशिश करते । यही तो बाजारवाद है ।

Tuesday, October 14, 2008

ओडीसा और कंधमाल के आंसू

ओडीसा में हिंसा जारी है । मामला ओडीसा के आदिवासी समुदाय का ईसाई धमॆ में परिवत्तॆन को लेकर है । जारी हिंसा इतना तेज हो चला है कि कई लोगो को वहां जान गंवानी पड़ी है ।३०० गांव को तहस-नहस कर दिया गया ,४३०० घर जला दिये गये । ५० हजार लोग बेघर हो गये । लगभग १८००० लोगो को चो‍‍ट आई १४१ चचॆ तोड़ दिए गए । १३ स्कूल को बन्द कर दिया गया । ये आंकड़े है उड़ीसा में आदिवासी समुदाय पर हुए अत्याचार का ।यू कहे तो बजरंग दल १९९५ से इस प्रकार की हिंसा करते आ रहे है । आस्टेलिया के ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेट और उनके बच्चे की हत्या इसका प्रमाण है । राज्य के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक बजरंग दल को समॆथन दे रखे है । सीधे तौर पर कहा जाय तो कि भाजपा के साथ सरकार में शामिल पटनायक ने धमाॆतरण को रोकने के लिए अपने दल और अन्य साथी समूहो को छूट दे रखी है । लेकिन मसला यह है कि बजरंग दल बार-बार कहती आयी है कि ईसाई मिशनरी पैसे का लालच देकर धमॆ परिवत्तॆन करा रही है । लेकिन राज्य में कानून है और एक भी मामला अभी तक इस तरह के मामले का सामने नही आया है । फिर सरकार के पास कानून है तो उसने इसका ठेका बजरंग दल को क्यो दे रखा है । समझ से परे है । सवाल यह भी है कि धमॆ परिवत्तॆन की जरूरत क्यो पड़ी । और इस परिवत्तॆन के पीछे कौन जिम्मेवार है सरकार ने गरीव आदिवासी तबको के लिए ऐसे उपाय क्यो नही किये जिससे इसे रोका जा सकता था । और जहां तक मामला पैसे लेकर कराने का है तो अभी भी ईसाई की संख्या ओडीसा में केवल ९ लाख है जो राज्य की पूरी जनसंख्या का ढाई प्रतिशत है । अगर ऐसा होता तो आदिवासी के लिए सबसे अच्छा वक्त अंग्रेजो के समय का था जब वे आसानी से अपना धमॆ बदल सकते थे । लेकिन उस समय ऐसी कोई बात नही थी ।भाजपा १९६० से ही ओडीसा पर शिकंजा कसने की फिराक में है । जो १९६४ में राउरकेला ,१९६८ में कटक और १९८६ में मदक और १९९१ में पूरे देश में हुए हिन्दु -मुस्लिंम दंगो से पटा है । इतना ही नही जिसका खामियाजा १९६६ के बाद के साल में भाजपा को लक्ष्मिनंद सरस्वती की मौत से मिला है । १९६६ में संध और भाजपा ने मिलकर सरस्वती को मुसलमानो औऱ ईसाईयो पर शासन करने और उसे शांत करने के लिए भेजा था । इस तरह भाजपा का इतिहास यहां क्या रहा है कहना ठीक नही है । लेकिन ताजा जो स्थिति है उसमें बजरंग दल के ऊपर लगाम लगाने का काम ओडीसा सरकार का है नही तो जिनके घर औऱ बच्चे जलेंगे उनके बारे में क्या कहा जाए । जो भी हो अच्छी फसल तैयार नही हो पायेगी । जिसका खामियाजा आज देश झेल रहा है । इसलिए ऐसा कोई कदंम न आगे बढे जो समाज को दिशा से भटकाये और फसलो को ही बबाॆद कर दे ।

Wednesday, October 8, 2008

बेगूसराय की धरती के दिनकर

वेगूसराय से आगे बढ़ते ही जीरो माईल मिल जाता है । जीरो माईल पर रामधारी सिंह दिनकर की शानदार प्रतिमा स्थापित है जो बरअक्स सभी गुजरने वाले लोगो का ध्यान अपनी और खीच लेती है ।शायद इतनी भव्य प्रतिमा किसी कवि या लेखक की पूरे विहार में नही बनी हुई है ।दिनकर जी का जन्म यही के पास के गांव सिमरिया में हुआ था । इसी गांव से पढ़कर दिनकर जी राष्‍‍‍टकवि कहलाए । मौका २३ सितम्बर का था । दिनकर की जन्मशताब्दी के मौके पर प्रभास जोशी और अशोक वाजपेयी सरीखे लेखक वेगूसराय पहुंचे । इस दिन को खुशनुमा बनाने के लिए दूर-दूर से लोग सिमरिया पहुंचे थे । दिल्ली से भी कुछ लेखक और विद्वान पहुंचे । सभी लोगो ने अपनी राय ऱखी । जोशी और वाजपेयी जी ने भी दिनकर और उनकी कविताओ के संबंध में अपनी बेवाक टिप्पणी रखी । हालांकि वारिस ने मजा कुछ खराब जरूर कर दिया था कुछ ऐसे भी विद्वान थे जो यह कह रहे थे कि इस स्थिति में प्रोगाम संभव नही हो सकता है । लेकिन उस भयंकर वारिस में भी लोग मानने को तैयार नही थे । लोग जोशी जी और वाजपेयी जी के विचारो को सुनना चाहते थे । तेज होती मुसलाधार वारिस से पंडाल घटा की भांति गरज रहा था लेकिन लोग मानने को तैयार नही थे । आखिरकार अगले दिन प्रोगाम सम्पन्न किया गया । यहां के लोगो का कवि,साहित्य के प्रति काभी प्रेम रहा है और कायम है जिसका मिसाल यहां से ८ किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोदरगांवा गाव है जहां की विप्लवी पुस्तकालय का जोड़ा शायद विहार में नही है और अगर गांव की बात की जाये तो पूरे देश में नही होगा । इसी साल वहां प्रगतिशील लेखक संघ का सम्मेलन हुआ था । देश भर से विद्वान वहां जुटे थे । शायद आम जनता के जेहन में यह आया भी नही होगा कि गांव में इतने बड़े लेखक पहुंच भी सकते है । लेकिन यह साहित्यिक गांव ने इस सम्मेलन को सम्मपन कराया । दिनकर के जन्मशताब्दी के मोके पर भी यही नजारा देखा गया । दिनकर शायद इस धरती को साहित्यिक बना गये थे ।दिनकर की यह कविताये आज भी कवि,लेखको और पढ़ने वाले को अपनी और खीचती है । सुनी क्या सिन्धु मै गजॆन तुम्हारा
स्वयं युगधमॆ का हुंकार हूं मै
या,मत्यॆ मानव की विजय का तूयॆ हूं मै उवॆशी अपने समय का सूयॆ हूं मै।