
ये हकीक़त है...प्यार का फसाना है....दो दिलो को जोड़ने की कहानी है....दो धमोॻ कोे टुकड़े-टुकड़े करने की जुबानी है.....कहते है कि इबादत में खलल डालना ठीक नही, लेकिन ये किस्सा ही ऐसा है कि लैला मजनू ,हीर-रांझा,सोनी-मेहबाल और रोमियो-जुलियट की प्यार भरी कहानी भी अपना वजूद ढ़ूढ़ने लगती है । कभी चांद की फिजा और कभी फिजा काी चांद ....लगता है मानो दोनो एक-दूजे लिए बने है और दोनो के लिए एक पल भी अकेले गुजारना आसान नही । मगर अब लगता है कि चांद को ग्रहण लग गया है और फिजा उसे ढ़ूढ़ने को आसमान तक की उचाई तक जाना चाहती है ।
निदा फाजली ने इस दास्तान को अपने नज्म में बखूबी जिया है ....
मुहब्बत अदाबत वफा वेवफाई
किराये के धर थे बदलते रहे ।
ऐसी कहावते भी निकलती रही है कि इश्क में इंसान एक हद तक गुजर जाता है और प्यार की कहानी बना डालता है ....लेकिन हकीकत में प्यार की ये कहानी,फसाने ही बनकर रह जाते है । न ही समाज और न ही सच्ची जिन्दगी में यह सफल हो पाता है .... अपवाद तो हर जगह है । लेकिन सच्चाई को अपवाद के जुमले से जोड़ा नही जा सकता है ।
प्यार का ये फलसफ़ा हमारी फिल्मी कहानी को जरूर मजबूती देता रहा है...जिसकोे लेकर अमिताभ बच्चन से लेकर राजेश खन्ना जैसे नामचीन कलाकारो ने पदेॻ पर अपनी अदाकारी से लोगो का दिल जीता है । सलीम-जावेद जैसी सरीखी जोड़ी ने भी इसे अपनी कामयाबी का हथियार वनाया और एक से बढ़कर एक कहानी को उकेरा । फिल्म सिलसिला और लावारिस में इस तरह की अदायगी देखने को मिलती है । बाडॻर फिल्म में इसे शरहदों को जोड़ने की एक मिसाल के तौर पर दिखलाया गया है । इसके उलट हकीकत कुछ और है जिसके बगैर जिया भी नही जा सकता है खासकर इसे आम जिन्दगी में अपनाना मुश्किलों से कम नही रहा है ।
चांद और फिजा की कहानी एक नजीर मात्र है । और खबरिया चैनलों के लिए कहानी में टविस्ट मात्र भर है ....जो परत दर परत आती रहती है और मीडिया-मुगल उसे फलसफे में ढ़ालते रहते है । कभी चांद फिजा की रोमांस की बाते ...कभी प्यार में पागल हो जाना... और धमॻ बदलकर शादी कर लेना....फिर चांद का ग्याब हो जाना और खबर आना कि चांद को किसी ने अगुआ कर लिया है....फिर चांद की तरप में फिजा का जहर खा लेना...किसी तरह से एक सफल कहानी की और नही जाता है । इतने देर में तो ख़बर भी नही बन पाती है । आखिर एक ही पल में चांद को क्या हो गया । रात भर में कितनी बाते सामने आ गयी उससे क्या प्रतीत होता है । अब तो चांद के अपने पिता का घर लौटने की भी खबर आने लगी है । ये सब क्या है।
हमारा सभ्य समाज इस तरह के प्यार और इस तरह के संबंध को कभी मजबूती नही दिया है। भले ही कभी-कभी यह हमारे समाज का हिस्सा होता रहा है ....और कभी-कभी तो शरहदों को जोड़ने की कहानी भी सुनने को मिल जाती है । लेकिन इसकी शुरूआत महानगर से होती रही है । महानगरों कीं पश्चिमी सभ्यता के बयार ने इसे हर जगह तक पहुंचाया है । लेकिन क्या वही समाज इस कहानी को टेलीविजन पर देखना चाहता है । अगर नही तो फिर इस तरह की कहानी बनाने की इजाजत क्यो देता है । बड़े घर से ये कहानी आती है और वहीं से फैलकर पूरे समाज और गांव तक जाती है । जिसे समझने की जरूरत है । फिलहाल तो चांद और फिजा के बारे में यही कहा जा सकता है कि ये इश्क नही आसां ।
निदा फाजली ने इस दास्तान को अपने नज्म में बखूबी जिया है ....
मुहब्बत अदाबत वफा वेवफाई
किराये के धर थे बदलते रहे ।
ऐसी कहावते भी निकलती रही है कि इश्क में इंसान एक हद तक गुजर जाता है और प्यार की कहानी बना डालता है ....लेकिन हकीकत में प्यार की ये कहानी,फसाने ही बनकर रह जाते है । न ही समाज और न ही सच्ची जिन्दगी में यह सफल हो पाता है .... अपवाद तो हर जगह है । लेकिन सच्चाई को अपवाद के जुमले से जोड़ा नही जा सकता है ।
प्यार का ये फलसफ़ा हमारी फिल्मी कहानी को जरूर मजबूती देता रहा है...जिसकोे लेकर अमिताभ बच्चन से लेकर राजेश खन्ना जैसे नामचीन कलाकारो ने पदेॻ पर अपनी अदाकारी से लोगो का दिल जीता है । सलीम-जावेद जैसी सरीखी जोड़ी ने भी इसे अपनी कामयाबी का हथियार वनाया और एक से बढ़कर एक कहानी को उकेरा । फिल्म सिलसिला और लावारिस में इस तरह की अदायगी देखने को मिलती है । बाडॻर फिल्म में इसे शरहदों को जोड़ने की एक मिसाल के तौर पर दिखलाया गया है । इसके उलट हकीकत कुछ और है जिसके बगैर जिया भी नही जा सकता है खासकर इसे आम जिन्दगी में अपनाना मुश्किलों से कम नही रहा है ।
चांद और फिजा की कहानी एक नजीर मात्र है । और खबरिया चैनलों के लिए कहानी में टविस्ट मात्र भर है ....जो परत दर परत आती रहती है और मीडिया-मुगल उसे फलसफे में ढ़ालते रहते है । कभी चांद फिजा की रोमांस की बाते ...कभी प्यार में पागल हो जाना... और धमॻ बदलकर शादी कर लेना....फिर चांद का ग्याब हो जाना और खबर आना कि चांद को किसी ने अगुआ कर लिया है....फिर चांद की तरप में फिजा का जहर खा लेना...किसी तरह से एक सफल कहानी की और नही जाता है । इतने देर में तो ख़बर भी नही बन पाती है । आखिर एक ही पल में चांद को क्या हो गया । रात भर में कितनी बाते सामने आ गयी उससे क्या प्रतीत होता है । अब तो चांद के अपने पिता का घर लौटने की भी खबर आने लगी है । ये सब क्या है।
हमारा सभ्य समाज इस तरह के प्यार और इस तरह के संबंध को कभी मजबूती नही दिया है। भले ही कभी-कभी यह हमारे समाज का हिस्सा होता रहा है ....और कभी-कभी तो शरहदों को जोड़ने की कहानी भी सुनने को मिल जाती है । लेकिन इसकी शुरूआत महानगर से होती रही है । महानगरों कीं पश्चिमी सभ्यता के बयार ने इसे हर जगह तक पहुंचाया है । लेकिन क्या वही समाज इस कहानी को टेलीविजन पर देखना चाहता है । अगर नही तो फिर इस तरह की कहानी बनाने की इजाजत क्यो देता है । बड़े घर से ये कहानी आती है और वहीं से फैलकर पूरे समाज और गांव तक जाती है । जिसे समझने की जरूरत है । फिलहाल तो चांद और फिजा के बारे में यही कहा जा सकता है कि ये इश्क नही आसां ।