
मसलन 15 लोकसभा चुनाव बिना किसी मुददे के लड़ा जा रहा है । भाजपा शुरूआत से किसी जानदार मुददे को तराश रही थी जिससे पूरे देश में शोर-शराबा हो...माहौल बिगड़े और जनता का रूझान किसी न किसी तरह उसके पॿ में जाये । इसलिए राम से लेकर अय़ोध्या में मन्दिर मनाने के हर वायदे को चुनावी फलसफा वनाकर तैयार करने की कोशिश की गई । फिर भी कोई हवा न मिली तो बरूण को एक सियासत के तहत जहर उगलने के लिए तैयार किया गया । पीलीभीत की जनता ने उकसावे में आकर तोड़-फोड़ सहित तमाम नाटक किए जिसकी स्क्रिप्ट संध और भाजपा के मदद से तैयार की गई थी । बरूण पर रासुका लगाा और साल भर तक बेल नही मिलने का फरमान भी आया । कहने का मतलब कि किसी न किसी बहाने भाजपा अपने रास्ते पर देर-सबेर चली आई । जिसकी तालाश उसे थी ।
सेक्युलर पाटिॻया भी कहां कम है । विकास के मुद्दे से अधिक ये दल अपनी टोपी दिखाने में वक्त जाया करती है । मुझे नही लगता है कि इन नेताओ को लाल टोपी से ज्यादा कोई सरोकार है लेकिन मुसलमानो का वोट जो लेना है इसलिए किसी जनसभा में इसके बिना पहुंच ही नही सकते...यही तो सेक्युलर होने की पहचान है । इसलिए तो कोई ऐसा दल नही है जो इन्हे रिझाने का जुगत नही करता है । भला भाजपा के धमॻध्वजधारी के साथ समझौता ही क्यो न हो...बाबरी मस्जिद गिराने के हीरो के साथ आपसी तालमेल क्यो न हो लेकिन ये टोपी लगी रहनी चाहिए । सियासी जुगत अपनी जगह है ।
तीसरे मोचेॻ की क्या रणनीति है । किस आधार पर जनता को अपनी तरफ खीच रहे है । है कोई मुद्दा...परमाणु डील के विरोध में क्रांग्रेस से अपना नाता तोड़ा था क्या इस बार कांग्रेस का साथ नही निभाएगे । गठबंधन में शामिल नही होकर क्या विपॿ की भूमिका में होगे या संशोधनवाद की तजॻ पर और पाटीॻ से तालमेल करेगे । मुद्दे कुछ भी नही है...सिंगुर का मामला दफन हो चुका है । नैनो गुजरात में तैयार हो रही है॥ममता की गली में बामपंथ की खोज चल रही है...ऐसा ही हाल केरल में भी है। अन्य राज्यो में तो किसान मजदूर हैं ही नही॥फिर ये किस आधार पर जनता से वोट मांग रहे है।
दाल रोटी हर दल की अपने प्रदेश में चल रही है । गठबंधन की राजनीति ने दिल्ली का दरवाजा हर दल को दिखला दिया है । इसमें कोई कमजोर नही है । चार सांसदो को जितवाकर मंत्री का पद आराम से ले सकते है । बस मोल-भाव की कला होनी चाहिए । इसीलिए तो कोई दल किसी तरह का कसर नही छोड़ना चाहती है...यही तो सियासत है ।
बाक युध्द शुरू हो चुका है । कांग्रेस बूढी दिख रही है और भाजपा युवा॥हर कोई अपने को नौजवान दिखाने की जुगत में है॥कोई युवाओ का हृदय सम्राट बनना चाहता है तो कोई हिन्दुओं का हृदय सम्राट । सबके अपने-अपने चादर है जिसमें वो मतदाताओं को गोलबंद कर रखना चाहते है । इस वाकयुध्द में न तो किसी के बोल का कोई मोल है और न ही इसकी कद्र । बस लोगों का दिल जीतना है । अभी रोलर चलने और कानून की हथकड़ी डलवाने में कोई परहेज नही है । चुनाव की ही तो बात है फिर तो एक ही सिक्के के दो भाग होकर रहना है ।