Saturday, June 6, 2009

प्रतिभा अपना स्थान खुद तलाश लेती है

बच्चे हमारे देश के भविष्य हैं...बच्चे के भविष्य बनने से न केवल देश बल्रल्कि एक परिवार,एक समाज तथा एक बेहतर भविष्य की संभावनाएं भी बन जाती है...एक बेहतर कल की बुनियाद के सहारे एक बेहतर इमारत की गुंजाइंश होती है..यही वजह है कि बच्चों के भविष्य को सवारने के लिए माता-पिता किसी तरह का समझौता नही करना चाहते है...खासकर शिॿा के नाम पर तो किसी तरह के समझौते करना तो बेहद ही मुश्किल हो जाता है । प्राइवेट या सरकारी किसी स्कूल में बच्चे का एडमिशन महत्वपूणॻ हो जाता है ।

बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ाई करे या प्राइवेट स्कूल में यह ज्यादा मायने रखने लगी है । इसके पीछे गुणवत्ता भी पीछे छुटने लगी है । एक तरफ खूबसूरत इमारत,चमचमाती दूधिया रौशनी में सुसज्जित कमरे,शानदार फऩीॻशिंग या कहे कि मूलभूत सुविधा से भी अधिक व्यवस्था है तो दूसरी और सरकार की मूलभूत व्यवस्थाएं है जो बच्चे के बेहतर गुणवत्ता के लिए किसी मायने में कम नही है । फिर भी हमारे देश में बढ़ रहे अभिजात वगॻ के लिए प्राइवेट स्कूल में बच्चे का एडमिशन कराना एक गौरव की बात है । इसमें वे अपनी शान भी समझते है...और रईसी का लेप भी इसमें मिला होता है । यही तो वह व्यवस्था है जो एक देश में दो भारत की कल्पना को उभारता है
लेकिन इस बार के नतीजे ने उन होसले को तोड़ा है कि केवल प्राइवेट संस्थान के बच्चे या ऊंची अभिजात वगॻ के सुख-सुविधा के धनी बच्चे ही अच्छे अंक हासिल कर सकते है । बाकी सब तो केवल पढ़ाई करने के नाम पर पढ़ाई करते है...लोग भी यह समझने लगे थे कि अच्छी गुणवत्ता तो केवल प्राइवेट विद्यालय में मिलती है । लेकिन इस बार के परिणाम ने उस मिथक को जरूर तोड़ा है और सरकारी विद्यालय के परिणाम ने प्राइवेट स्कूल को आईना दिखा दिया है ।

रांची के संजीत महतो की कहानी उन बच्चे के लिए काफी है । हजारीबाग के विद्यालय में रसोई का काम करके पढ़ाई भी जारी रखना संजीत के लिए कम आसान नही रहा । आजकल तो यही देखा जा रहा है कि पान की दुकान से अपना पेट गुजारा करनेवाले के बच्चे मेडिकल की परीॿा में टाॅप करते है और अपने पेट काटकर बच्चों की पढ़ाई में पैसा लगानेवाले लोगो के बच्चे अपना नाम रौशन करते है । फिर यह तो माना ही जाना चाहिए कि गुणवत्ता के नाम पर किसी तरह का भेदभाव करना बेकार है ।

विद्या के मन्दिर में प्रतिभा ही मुख्य पैमाना होता है । व्यवस्था भले ही सरकारी या प्राइवेट का ताना बाना देकर दोनो के बीच दूरी बनाने का काम करे लेकिन हकीकत यह है कि प्रतिभा वहीं छलकती है जहां प्रतिभान छात्रों का जमधट हो...सच यह है कि प्रतिभा अपना स्थान खुद तलाश लेती है ।