Wednesday, December 31, 2008

नया साल आपके लिए नयी खुशिया लेकर आए

नया साल अपने आखिरी दहलीज पर पांव थामें खड़ा है...हमलोग रफ्ता-रफ्ता अपने अंदाज में इसे रूकसत करनेे को तैयार हैं। नए साल का ेइस्तक़बाल करने को आतुर है....और बांह पसारे खड़े है । चंद घंटों में साल 2008 गहरी नींद में सो जाएगी । नएा साल प्रभात की किरण के धरती पर आते ही लोगो के दिलों में कोलाहल मचाने लगेगी । आगमन के स्वागत की तैयारियां पूरू हो चुकी है...गोवा शिमला और विक्टोरिया पैलेस शैलानियों के आगमन से कसमकस हो चुका है । कहीं आधी रात की पाटीॻ का हलचल है। शहर मुम्बई फिल्मी अदाकाारा के जिस्मानी जलबे के साथ नए साल की सुगबुगाहट पाने को बेताब है। हलांकि प्रशासन के तरफ से यह हिदायत मिली है कि सुरॿा कारणों की बजह से रात बारह बजे के बाद किसी तरह की पाटीॻ न करें। लेकन नए साल के आगमन को लेकर लोगो के दिल में दिलचस्पी है जो अपने-अपने तरीके से भुनाना चाहते है ।
नए साल के आगमन और पुराने साल के विछड़ने का सिलसिला वषोॻ से चलता आ रहा है । मसलन बीते साल को हम विदा कर रहे है जो हमारे लिए कई यादो को अपने साथ सहेजे है । इस साल में हमने कई उपलब्धियों को हासिल किया तो कई धटनाओ ने हमारे जख़्म फिर से हरेे कर दिए । एक तरफ हमने अमेरिका-अमेरिका न्युक्लियर डील दुनिया के सामने सुपर पावर होोने का संकेत दिया ।ो दूसरी और चंदॺयान की सफलता ने हमारे वैॾानिको के वषोॻ से सॅंजाये सपने को साकार कर गया । चांद पर हमने तिरंगा लहराकर अपनी वैॾानिक कुशलता की पहचान दी । लोकतांंंंत्रिक प्रक्रिया में भी हमने सबसे बड़े लोकतंत्र होने का अहसास दुनिया को कराया है । जिसकी ताजा मिशाल जम्मू-कश्मीर चुनाव है । जहां मतदाताओ ने चढ-बढ़कर हिस्सा लिया । और दिखला दिया कि हम आतंक और दहशत के साये में जी कर भी लोकतंत्र में विश्वास रखते है । ऐसा पहली बार हुआ कि जम्मू-कश्मीर के मतदाताओ ने 69 से लेकर 60 प्रतिशत का मतदान किया । मतदान में महिलाओ के साथ-साथ पुरूषो ने भी महत्वपूणॻ भूमिका का निवाॻह किया ।जनता ने अपने मत से सरकार चुनकर अलगावादियो और अमन के दुश्मनों को करारा जबाब दिया है ।
इस साल खेल में भी हम किसी से पीछे नही रहे । बीजिंग ओलंपिक तो बस एक शुरूाआत रही ...उसमें भी भारतीय अभिनव,अखिल और विजेन्दॺ ने भारत का नाम रौशन किया । आगे यही तीनो अन्य भागेदारी के लिएें कमर कसे हुए है और नयी फसल भी तैयार कर रहे है।विश्वनाथन आनंद की बादशाहत आज भी बरकरार है । दुनिया के 64 खाने के बादशाह उनके सामने नतमस्तक हैं ।सचिन तेंदुलकर रूकने का नाम ही नही ले रहे है । रनो और शतकों के पहार के साथ-साथ रिकाडोॻ के पहार भी खड़े करते जा रहे है । हाॅल ही उसने लारा का रिकाडॻ तोड़ क्रिक्रेट में अपने नाम एक नई इबारत लिखी है ।धोनी जहां जाते है धूम मचा देते है । चाहे वन डे की कप्तानी हो या ट्वेंटी-टवेंटी या अब फिर टेस्ट की कप्तानी हर जगह धोनी की धूम है । खेल के हर ॿेत्र में इस साल हमने नई इबारत लिखी है।
कुल मिलाकर आतंकी हमलों के जख़्म को छोहकर साल 2008 हमारे लिए कामयाबी का साल रहा है । केवल आतंक के जख्म ने हमें हर बार झकझोरा है । हाल ही में मुम्बई में हुए आतंकी हमले ने हमारे देश के शान के ऊपर हमला किया है । लेकिन इसके लिए हम तैयार है और आतंकियों को हम हमले का माकूल जबाब देगे। राजनीति,खेल,और फिल्म से लेकर वैॾानिक ॿेत्र में हमने कामयाबी हासिल की है । वस यही सिलसिला नये साल में भी जारी रहे । नये साल में भारत और नई ऊचाई पर पहुंचे । नये साल के आगमन पर आपलोगों को हादिॻक धन्यवाद

Thursday, December 25, 2008

अमन के दुश्मन एक बार अपनी गिरेबाँ में झांक कर तो देखो

भारत एक लोकतांत्रिक देश है और विचारों की असहमति लोकतंत्र की सेहत व उसकी प्रामाणिकता की एक अनिवायॻ शतॻ मानी जाती है । हमलोग भी आम जिन्दगी में विचारो ंके असहमति और आदान-प्रदान को समाज और उससे जुड़े लोगो के लिए बेहतर मानते है । इससे संबंध प्रगाढ़ होते है और दूरिया कम होती है । लेकिन क्या हम उस परिस्थिति में ऐसी बेजुवानी टिप्पणी को पसंद करेगें जहां आतंकवाद के नाम पर पूरे देश और संसद में राष्टीॺय सहमति बन रही हो...उससे मुकाबला करने के लिए सभी दल एकजुट हो रहे हो। वैसी स्थिति में ए।आर। अंतुले के वयान से हम क्या आकलन कर सकते है राष्टीॺय सहमति पर लगी इस चोट का हवाला हम इसलिए दे रहे है क्योकि हमारे देश के लोकतंत्र में एक दुभाॻग्यपूणॻ स्थिति यह रही है कि यहां राष्टीॺय सहमति कभी बन नही पाती है इसलिए कई प्रयास सरकार की और से किये भी जाते है जो शायद दिखावा या सही भी हो सकता होै लेकिन इस बार ऐसा लगाा कि मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमलों के बाद पूरा देश और संसद एक साथ है । आतंकी ताकतो से मुकाबला करने का मन बना रही है । और वह कदम उठाने को तैयार है जो असली में न सही सियासत और कूटनीति की बिसात पर हीी लोकतंत्र को बचाने के लिए संभव हो । वैसी स्थिति में यह वयान किसी तरह से एक राष्टीॺय पाटीॻ के संसद को शोभा नही देता है बल्कि बेतुका नजर आता है ।
हमारा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान बारूद के ढ़ेर पर टिका हुआ है । आतंकवादी संगठन ने देश को इस कदर जकड़ लिया है कि वहां सरकार नाम की कोई चीज नही है । सेना प्रमुख आईएसआई के मुखिया है जिनका काम ही पड़ोसी मुल्क में आतंक और दहशत फैलाना है लोगो का अमन चैन छीनना है ऐसे जनरल से हम किसी तरह की उम्मीद भी नही रह सकते है जो हमे ऐसी ताकतो से लड़ने में मदद करेंगे या यू कहें कि अपने देश में तालीम ले रहे आतंकवादी संगठनों पर किसी तरह का लगाम लगाएगे । पाकिस्तान का राष्टॺपति एक ऐसा व्यक्ति है जो खुद पाकिस्तान में मिस्टर टेन परसेन्ट के नाम से मशहूर है ।सारी दारोमदार जनरल परवेज अशफाक कियानी पर है जो शायद परवेज मुशॻरफ के देशी औलाद है क्योकि बिना आकलन के भारत जैसे देश को धमकी दे रहे है कि हम भारत का कड़ा विरोध करेगें । ऐसी स्थिति में देश का एकजुट होना देश के लिए एक संजीवनी का काम कर सकता है और विदेश नीति तक में सहायक हो सकता है ।
देश की एकजुटता की यह मिसाल है कि पाकिस्तान पहली बार इतनी दवाब की स्थिति में है ।ाअगर भारत विश्व जनमत को इस आतंक की जन्मभूमि पाकिस्तान के खिलाफ एकजुट करने में सफल हो पा रहे है तो यह इसी राष्टीॺय सहमति की वजह से संभव हो पाया है । आज पाकिस्तान दुनिया के सामने अपना वचाव नही कर पा रहा है तो यह इसी का परिणाम है । आज अंतुले ने करकरे की शहादत पर जो सवाल उठाकर छोटापन दिखाया है तो सेंध उस राष्टीॺय सहमति में लगी है जिसकी वजह है कि भारत पाक को विश्व अदालत की कटधरे में बंद नही कर पा रहा है । यह बात अंतुले को सोचना चाहिए ।
यह हमारी राष्टीॺय सहमति का ही नतीजा था कि हम जन्मजात शत्रु पाकिस्तान को 1965 और 1971 के युध्द में धूल चटा चुके है । 1962 में चीन के हाथो पराजय के बाबजूद हमारा राष्टीॺय मानस पराजय का नही बना । कारगिल में भारतीय जवान के कारनामें को शायद पाकिस्तान भूल नही पाया होगा । एक बार फिर हम हिंद देश की और से हुंकार भर रहे हैूं कि पाकिस्तान अपनी गिरेबां को झांक कर देखे । भारत तैयार है । क्योकि जब-जब इस देश पर दहशतगदोॻ ने हमला किया है हमने उसका माकूल उत्तर दिया है

Friday, December 19, 2008

अपनी इज्जत पर लगी चोट नासूर की तरह होती है

२६ नवम्बर के फियादीन हमलों ने देश की धड़कन मुम्बई को हिला दिया । देश में रफ्तार और तेज जिन्दगी पकड़ने के लिए मशहूर मुम्बई थोड़े समय के लिए ज़रूर थम गई । इस बार आतंकी ताकतो ने मुम्बई की शान माने जाने वाली ताज और नरीमन होटल पर हमला किया । जो मुम्बई में अपनी वैभवता के लिए जाना जाता है यू कहें कि मुम्बई की शान का प्रतीक माना जाता है । हमला तो शिवाजी टमिनल पर भी किया गया जहां लगभग ५६ सामान्य या यूं कहे कि दूर देश-प्रदेश कमाने वाले अधिकांश लोगो की मौत हुई । लेकिन ताज होटल में जो हत्या की गई उसमें देश के नामी गिरामी उधोगपति,पत्रकार,खिलाड़ी के ठहरने का प्रबंध होता है । जो देश की जान और शान माने जाते है । देश का दिल उसी के दिल से धड़कता है या मानो देश को गति के लिए संजीवनी मिलती है । मसलन मुम्बई में हुए इस हमले को खूब तूल दिया गया । टेलीविजन से लेकर अखबार तक के मीडिया मुगल ने कलमनसीबी का जोरदार मुजाहिरा किया । शायद अभी तक नामी-गिरामी लेखक मुम्बई में हुए हमले को पचा नही पा रहे है । एक बात तो सच है कि इस हमले ने यहां के शख्सियत को अंदर से हिला कर रख दिया है । इसलिए इस शहर के ब्रांड से लेकर फिल्मी कलाकार तक इस हमले का विरोध करने सामने आए । खुद शतकवीर सचिन तेंदुलकर ने अपने ४१वे शतक को मुम्बई में हुए हमलों के शहीद और पीडीत परिवारो के नाम किया । आम जनता का विरोध भी इस कदर हुआ कि शिवराज पाटिल और महाराष्ट सरकार तक को जाना पड़ा । लोग काफी संख्या में विभिन्न तरीके से विरोध किया चाहे मुमबत्ती जलाकर हो या अन्य माध्यम से लोगो ने अपना गुस्सा उताड़ा । लेकिन इस गुस्से में एक बात साफ दिख रही थी कि इस तरह का विरोध मुम्बई पर हुए हमलो के कारण हुआ । क्योंकि इसमें देश के बड़े आदमी की जाने गई थी । क्योकि शिवाजी टमिनल पर ५६ लोगो की हत्या को उतना तरजीह नही दिया गया था । बाद में इस घटनाओ को चैनल ने दिखाना शुरू किया । मामला जो हो इस हमले ने देश के सामने कई सवाल खड़े किए । देश में कहीं भी लोग अपने को महफूज नही मान कर चल रहे है । खास कर मुख्य स्थल पर ठहरना उचित तक नही है । महानगरो में लोग सर में कफन बांध कर जी रहे है । अमिताभ बच्चन अपने तकिये के नीचे पिस्टल लेकर सोते है । फिर यह हमले यह सवाल खड़ा करता है कि आखिर चुक कहां से हो जाती है । क्यो आतंकी के मंसूबे सफल हो जाते है और हमारी खुफिया बाद में जांच का नाम लेकर अपना पल्ला झाड़ लेती है दशहतगदॆ अपने मकसद में कामयाब हो जाते है और हम हाथ पर हाथ घरकर बैठे रह जाते है । सुरछा के नाम पर बीआईपी का नाम लिया जाता है । बीआपी के लिए जितनी सेना लगी है उससे देश में अन्य हिस्सो को सुरछित किया जा सकता है ।५००००० सेना में लगभग १००००० सेना वीआईपी को बचाने में लगा रहता है । लेकिन फिर भी ये महफूज नही है । इसलिए तो मुम्बई में इतने बड़े नारे और भीड़ जमा हो रही है आखिर शान और शोहरत पर चोट लगी है ।

Thursday, December 11, 2008

सत्ता के सेमीफाइनल में कांग्रेस विजयी

पांच राज्यो के चुनाव परिणाम की गिनती ८ दिसम्बर को होनी थी । इससे पहले ही २९ नवम्बर को ख्त्म हुए चुनाव के बाद दिल्ली की चुनावी कचहरी आराम फरमा रही थी । बस इंतजार था कि परिणाम किसके राजसुख के नाम होगा । दिल्ली में शीला सरकार अपना अगला कायॆकाल फिर से आगे जारी रखेगी या सीएम इन वेटिंग विजय कुमार मलहोत्रा बाजी मार ले जाएगे । सुवह साढे छह बजे टेलीविजन का स्विच दबाने पर शीला अपने लांन में टहलती नजर आई । पत्रकारो की नजर उनके उपर गई मनाना शुरू कर दिया ,काफी मानमनौवल के बाद शीला ने एक प्रश्न का जबाब देने को हाजिर हुई । उससे जो जबाब आए उससे दिल्ली की तस्वीर साफ नही हो रही थी । शीला ने साफ तौर पर कहा था कि हम कंफिडेट नही है कि सरकार वना पाएगे या नही । उसके बाद अन्य चैनल भी दिल्ली में परिवत्तन की बात पर जोर दे रहे थे और कांग्रेस की तरफ से पसरे सन्नाटो से चुनाव का मिजाज टटोलने की कोशिश कर रहे थे । मलहोत्रा जी ज्यो ही पत्रकारों से मुखातिब हुए दिल्ली में अपनी पक्की जीत का दिलासा पत्रकारो और आम जनता को दिया । स्थिति किसी तरह से कांग्रेस के उलट ही दिख रही थी ।
राजस्थान ,मध्यप्रदेश औऱ छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणाम का आकलन शायद लोगो को और चैनलो को पहले से था । इन राज्यो की स्थिति साफ नजर आ रही थी । राजस्थान में सिंधिया का जाना औऱ मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा का दुबारा बने रहना साफ दिखाई दे रहा था लेकिन दिल्ली की सुखॆ राजनीति बूढी हो चली कांग्रेस और बूढ़ी हो चुकी शीला के हाथो निकलने का डर कांग्रेसियो को शायद सता रहा था । लोगो से बातचीत में किसी ने यह नही बताया था कि कांग्रेस दुबारा सत्ता की खुश्बू ग्रहण कर पाएगी । भाजपा यहां कई मुद्दो को जीवंत बनाने की नकाम कोशिश में कोई कसर नही छोड़ी थी । डिनर से लेकर डिल्लोमेसी तक में हर जगह वह कांग्रेस को मात देने के लिए उग्र दिख रही थी । मुद्दे अहम थे । मंहगाई दिल्ली सरकार की विसात में सुराख डालने की तरह था । लोगो के रूह में प्रवेश करा दिया गया था कि मंहगाई सरकार की देन है और अब आम जनता का दिल्ली में रहना आसान नही है । आतंकी हमले केबिनेट से लेकर दिल्ली सरकार की कुसी तक हिला देने के लिए काफी था । शिवराज पाटिल के कपड़े बदलने ने का्ग्रेस की फजीहत करा दी थी । सीलिंग का मुद्दा पहले ही शीला सरकार की कमर तोड़ चुका था । लग रहा था कि दिल्ली के दुकानों में लगे ताले शीला सरकार के मुख्यालय में ताले लगवाने के लिए काफी है । हर तरफ से सरकार घिरती दिख रही थी । इतने के बाबजूद शीला ने स्टार न्यूज और अन्य चैनलो पर जज्बे को बनाए रखा था और मुश्किल भरे सवालो को जबाव आसानी से दे रही थी । हर जबाव विरोधियो को धराशायी करने के लिए काफी था । इस चुनाव में ज़नता ने एक चीजे साफ कर दी । विकास ने राजनीति के हर हथकंडे को नाकाफी सावित कर दिया । शीला के विकास,दिल्ली के गली-गली में सुख-सुविधा ने आम लोगो के विश्वास को बनाए रखा । शीला ने एक बार फिर भाजपा को बाहर का रास्ता दिखला दिया ।

Thursday, December 4, 2008

मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना

कोई भी मजहब आतंक की तालीम नही देता । कोई भी धमॆ रक्त बहाने को बढ़ावा देने की वकालत नही करता । खासकर आतंकी घटनाएं तो किसी को तवक्को नही है । चाहे हिन्दु हो या मुसलमान,सिख या ईसाइयत...या फिर बोद्ध ...कुरानशरीफ तक ने सभी मानवों को साथ रहने और जीने की तालीम देता है उसी राह पर सभी धमॆ आपसी भाईचारे और नेकनीयती की सीख देता है । इसलिए बार-बार यह सवाल कुरेदता रहता है कि आतंकवादियो का कोई मजहब नही होता । उनका मजहब केवल इंसा का खून बहाना होता है॥मनुष्य को कष्ट पहुंचाना होता है उसी में उसे आनंद आता है ।
लेकिन इसके विपरित एक सवाल बार-बार जेहन में आता है कि आतंक का कोई मजहब नही होता है फिर आतंकी किसी मजहब का नाम अपने साथ क्यो जोड़ते है । अपने खुदा या अल्लाहताला का नाम क्यो लेते है खुदा ने उसे दहशत फैलाने और जेहाद के लिए धरती पर भेजा है या उसकी तरफ से पैगाम मिला है।
इसके बाबजूद कोई भी धमॆ आतंक और हिंसा से अधूरा नही है ...यहां तक कि बौदध धमॆ भी नही जिसकी बुनियाद अहिंसा पर हुई है । इस्लाम का इतिहास ही अहिंसा पर टिका है । शाहजहां से लेकर औरंगजेब तक शासन के लिये अपने पिता को बंधक बनाना और जेल में कैद रखना ...सारा का सारा इतिहास पटा हुआ है । तैमूर से लेकर गजनबी तक का इतिहास अहिसा की बुनियाद पर लिखी गई है फिर आतंक का किसी मजहब के साथ नही होने से कैसे इन्कार किया जा सकता है ।
हिन्दुओ का इतिहास भी इससे अधूरा नही है । बिम्बिसार से लेकर अशोक तक का इतिहास खून से लिखा गया है । अशोक ने बोद्दद धमॆ अपनाने से पहले लाखो लोगो की हत्या करवा चुका था और अपने ९९ भाइयो को कत्ल कर शासक बना् था । बहुत सारे उदाहरण इतिहास के पन्नोँ में लिखित है । अहिंसा की बुनियाद पर टिका बोद्ध धमॆ भी द्वितीय विश्वयुध्द में किसी से पीछे नही रहा । सारे धमॆ के लोग किसी न किसी तरह हिंसा-प्रतिहिंसा से जुड़े दिखते है फिर कैसे इन्कार किया जा सकता कि कोई मजहब आतंक की तालीम नही देता ।
यूं कहे कि धमॆ की बुनियाद ही हिंसा पर टिकी है या तैयार हुई है । सभी धमॆ के लोगो ने इंसान का खून बहाया है और इसी के बलबूते अपने को स्थापित किया है ।
लेकिन मजहब ऐसा नही कहता । बेसहारा जनता ऐसा नही सोचती । मुम्बई ,दिल्ली और जयपुर के लोग ऐसा नही सोचते । फिर यह सोचने को मजबूर होना पड़ता है कि आखिर जेहाद क्या है । इंसान इंसान का खून क्यो गिराता है । जब कि कोई मजहब या पैगम्बर ऐसा नही कहता । फिर मुम्बई में ताज होटल में लोगो का खून क्यो बहा । आखिर जेहाद की कुछ तो परिभाषा होनी ही चाहिए ।