Thursday, December 4, 2008

मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना

कोई भी मजहब आतंक की तालीम नही देता । कोई भी धमॆ रक्त बहाने को बढ़ावा देने की वकालत नही करता । खासकर आतंकी घटनाएं तो किसी को तवक्को नही है । चाहे हिन्दु हो या मुसलमान,सिख या ईसाइयत...या फिर बोद्ध ...कुरानशरीफ तक ने सभी मानवों को साथ रहने और जीने की तालीम देता है उसी राह पर सभी धमॆ आपसी भाईचारे और नेकनीयती की सीख देता है । इसलिए बार-बार यह सवाल कुरेदता रहता है कि आतंकवादियो का कोई मजहब नही होता । उनका मजहब केवल इंसा का खून बहाना होता है॥मनुष्य को कष्ट पहुंचाना होता है उसी में उसे आनंद आता है ।
लेकिन इसके विपरित एक सवाल बार-बार जेहन में आता है कि आतंक का कोई मजहब नही होता है फिर आतंकी किसी मजहब का नाम अपने साथ क्यो जोड़ते है । अपने खुदा या अल्लाहताला का नाम क्यो लेते है खुदा ने उसे दहशत फैलाने और जेहाद के लिए धरती पर भेजा है या उसकी तरफ से पैगाम मिला है।
इसके बाबजूद कोई भी धमॆ आतंक और हिंसा से अधूरा नही है ...यहां तक कि बौदध धमॆ भी नही जिसकी बुनियाद अहिंसा पर हुई है । इस्लाम का इतिहास ही अहिंसा पर टिका है । शाहजहां से लेकर औरंगजेब तक शासन के लिये अपने पिता को बंधक बनाना और जेल में कैद रखना ...सारा का सारा इतिहास पटा हुआ है । तैमूर से लेकर गजनबी तक का इतिहास अहिसा की बुनियाद पर लिखी गई है फिर आतंक का किसी मजहब के साथ नही होने से कैसे इन्कार किया जा सकता है ।
हिन्दुओ का इतिहास भी इससे अधूरा नही है । बिम्बिसार से लेकर अशोक तक का इतिहास खून से लिखा गया है । अशोक ने बोद्दद धमॆ अपनाने से पहले लाखो लोगो की हत्या करवा चुका था और अपने ९९ भाइयो को कत्ल कर शासक बना् था । बहुत सारे उदाहरण इतिहास के पन्नोँ में लिखित है । अहिंसा की बुनियाद पर टिका बोद्ध धमॆ भी द्वितीय विश्वयुध्द में किसी से पीछे नही रहा । सारे धमॆ के लोग किसी न किसी तरह हिंसा-प्रतिहिंसा से जुड़े दिखते है फिर कैसे इन्कार किया जा सकता कि कोई मजहब आतंक की तालीम नही देता ।
यूं कहे कि धमॆ की बुनियाद ही हिंसा पर टिकी है या तैयार हुई है । सभी धमॆ के लोगो ने इंसान का खून बहाया है और इसी के बलबूते अपने को स्थापित किया है ।
लेकिन मजहब ऐसा नही कहता । बेसहारा जनता ऐसा नही सोचती । मुम्बई ,दिल्ली और जयपुर के लोग ऐसा नही सोचते । फिर यह सोचने को मजबूर होना पड़ता है कि आखिर जेहाद क्या है । इंसान इंसान का खून क्यो गिराता है । जब कि कोई मजहब या पैगम्बर ऐसा नही कहता । फिर मुम्बई में ताज होटल में लोगो का खून क्यो बहा । आखिर जेहाद की कुछ तो परिभाषा होनी ही चाहिए ।

4 comments:

कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra) said...

मित्र, यह कहना सच हो सकता है कि धर्म के नाम पर हर मजहब ने खून बहाया है, लेकिन इस तथ्य की आड़ में अशोक और लादेन कि तुलना नहीं की जा सकती. प्राचीन परिस्थितियां ऐसी थीं कि अपने साम्राज्य को कायम रखने के लिए हिंसा का सहारा लेना पड़ा. पुनश्च ज्ञान आते ही अशोक का ह्रदय परिवर्तन भी तो हुआ. द्वितीय विश्वयुद्ध की तो परिस्थिति ही विपरीत थी. वहां राष्ट्रों के अस्तित्व की बात थी, न कि मजहब की. अस्तु जापान द्वारा की गई हिंसा को बौद्ध धर्म की हिंसक प्रवृत्ति नहीं माना जा सकता.

घूम फ़िर कर बात सारी इस्लाम पर ही टिक जाती है. उनमें तो अशोक जैसा कोई उदाहरण नहीं मिलता. दूसरी बात, आज के युग में भी राष्ट्र के समीचीन विकास की बात न कर ये राष्ट्र केवल कट्टरता का ही पोषण कर रहे हैं, गरीब युवकों की बात रहती तो भी ठीक था. लेकिन अगर उच्च-शिक्षित इंजिनियर-डॉक्टर युवा भी दहशतगर्दी का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं, और इसके लिए उन्हें कोई अफ़सोस भी नहीं, तो सोचना पड़ता है कि इस्लाम के सिद्धांतों में कहाँ कमी है?

और हाँ, अगर वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लें तो टिप्पणीकार को सहूलियत होगी.

शुभकामनायें

seema gupta said...

मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना
" bilkul sach khaa , lakin fir bhi log to seekh jatyn hain or dukh ka karan bntey hain...... na mjhb sikhata hai na hi maa baap, fir na jane khna se kyun koe bhi seekh jata hai............aapke bhavon ki hum kadar krteyn hain"

Regards

Manish Kumar said...

मज़हब की आड़ में आतंकवादियों को निर्मम हत्याएँ करने में सहूलियत मिलती है। धर्म के नाम पर शहीद होने का तमगा मिल जाता है वो अलग। ऍसे में धर्म के नाम पर नफ़रत का बीज बोने वाले इन पाखंडियों की शिनाख्त और फिर उनका समाज से उन्मूलन आवश्यक है।

mala said...

बहुत सुंदर ...!