Monday, July 27, 2009

राखी स्वयंवर में मुहब्बत का मिसड कोल

स्वयंवर की कहानी से हमारा इतिहास भरा पड़ा है । रामायण और महाभारत की कहानियों में स्वयंवर की चचाॻ है । रामायण में राजा जनक ने सीता का वर चुनने के लिए स्वयंवर रचा था और इसी तरह का पसंग महाभारत में भी है जिसमें दोॺपदी की शादी के लिए लॿ्य को बेधने जैसे प्रसंग सीरियल के माध्यम से और किताबों के जरिये लोगो तक परोसा गया है । टीवी सीरियल के माध्यम से ऐसा ही एक रियलटी शो एनडीटीवी इमेजिन पर राखी का स्वयंवर के नाम से दिखलाया जा रहा है ।

धमॻ की समझ कम रखता हूं । कहने में थोड़ी झिझक जरूर है । क्योकि अख़वारों के माध्यम से यह पढ़ने को मिलता है कि आज की युवा पीढ़ी को धमॻ कीें जानकारी कम है और वे आधुनिकता के इस दौर में धमॻ से किनारा कर चलते है । या धमॻ को मानने के लिए तैयार नही है । धामिॻक कथाएं या धामिॻक अनुष्ठान उसे समझ से पड़े लगता है । या कहे कि वे सोचते है कि धमॻ की बाते सुनने या मानने के लिए उनके पास ज्यादा वक्त नही है । जो भी हो इस तथ्य से इन्कार नही किया जा सकता है ।

सीता विवाह के लिए धनुष को तोड़ना कितना मायने रखता था मुझे नही मालूम । धनुष को तोड़ने के जरिये वर के किस गुण को नापा गया था ये भी नही मालूम । आज तो वर ढ़ूढ़ने के वक्त लड़के के शिॿा परिवार और खानदान की बात होती है । उस समय का जो पैमाना था उस पैमाने में जिस कौशल को देखा जाता था यह एक अलग विचार का विषय है । शायद लड़के की अधिकता हुई होगी या फिर पहले से ही फिक्स होता होगा कि वही धनुष उठा सकता है । और वधु उसके गले में माला डालेगी ।

यही कहानी महाभारत में दोॺपदी के स्वंयवर में देखने को मिलता है । जो लड़का तिरंदाज होगा और मछली के आंख को बेध देगा उसी के गले में दोॺपदी वर माला डालेगी । यहां भी कुछ फिक्स ही नजर आता है । तीरंदाज और भी थे । कणॻ जैसे महारथी भी थे लेकिन उन्हे मौका नही मिला । अजुॻन ने यह कर दिखलाया और दोॺपदी बिना मन से पांच पांडवों की पटरानी बन गई । भला यह भी कोई स्वंयवर है मछली के आंख को बेधे अजुॻन और पटरानी बनी पांचों भाई की ।

यही कहानी राखी स्वयंवर में भी दिखलाया जा रहा है ।हां यहां पैमाना जरूर बदल गया है । राखी के पीछे लड़कों की भरमार है । हर किसी से रिस्ता तय होता है और अंत में जाकर रिश्ता टूट जाता है । या लड़कियों के शब्द में कहें तो राखी हर लड़के की बेइज्जती कर उसे ठुकरा देता है । भला ये भी क्या स्वयंवर हैं ।ये ही कहा जाता है कि लड़के भी राखी के साथ खेल खेलने ही आता है ।भला राखी क्या खे़लने की चीज है । जो भी आता है टांके डालकर चला जाता है । राखी का अंदाज भी अलग और लड़के का अंदाज भी जुदा-जुदा

रियल्टी शो चल रहा है । संस्कृति तार तार हो रही है । चैनल की कमाई हो रही है । और संस्कृति की लुटिया डुबोई जा रही है । राखी को पैसे मिल रहे है उसे कोई गम नही है । उसे तो लुटने के ही पैसे मिल रहे है । पैसे के पीछे तहजीव और रवायत को कौन देख रहा है ।वही हाल चैनलों का भी है । दशॻक के सामने अश्लील परोसा जा रहा है और मजा भी आ रहा है । देर मत कीजिए । राखी को आप भी मुहब्बत का मिसड काॅल मार सकते है ।

Wednesday, July 15, 2009

आयोग की विश्वसनीयता से उ‌ठते सवाल

लिब्राहन आयोग ने अपनी रिपोटॻ सरकार को सौप दी । रिपोटॻ में जो भी लिखा हो । यह तो संसद पटल पर आने के बाद ही पता चलेगा । अभी तो यही चचाॻ है कि आखिर जस्टिस लिब्राहन ने अपनी रिपोटॻ में किसे बक्शा है और किसे राहत दिया है । राजनीतक सरगमीॻ भी तेज हो चली है । रिपोटॻ के आने और न आने के समय पर भी सवाल उठ रहे है । आखिर बाबरी मस्जिद बिध्वंस के बाद जस्टिस लिब्राहन को यह जिम्मेदारी सौपी गई थी कि वे मामले की सच्चाई को बाहर करे । रिपोटॻ आई और इतने दिनों के बाद आई यही बड़ा सवाल है । जिसके तह में जाने की जरूरत है । और सवाल एक बड़ा सवाल बनकर उभर रही है । आखिर लिब्राहन ने इतने वक्त क्यो लगाएं

लिब्राहन आयोग के मूल में जाने से 6 दिसम्बर 1992 की घटना ताजा हो जाती है । भाजपा और उसके सहयोगी विहिप,बजरंग दल ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया । घटनाएं कैसे आगे बढ़ी और कहां तक पहुंच गई । इसका अंदेशा सभी को था । कल्याण सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे । जो बाबरी मस्जिद बिध्वंस में लालकृष्ण आडवाणी और उमा भारती के साथ अहम भूमिका में थे । उमा भारती आज भी उस दिन की घटना में स्वयं को जिम्मेवार मानती है और आज भी फांसी पर लटकने को तैयार है । भले ही आज कोई उन्हे फांसी पर लटकाने में रूचि नही ले रहा है । केन्दॺ में नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे । इतनी गहरी नींद में सोये थे कि पता नही चला । मस्जिद गिरा दी गई । फिलहाल 6 दिसम्बर के भीतर ज्यादा झांकने की जरूरत नही है । घटनाएं किसी से छिपी नही है ।ी जानकारी सभी को है । कौन दोषी है कौन नही है देश की जनता को मालूम है । लेकिन सवाल तो आयोग से शुरू होता है ।

6 दिसम्बर को मस्जिद ढ़ाह दी गई । 16 दिसम्बर को देश के प्रधानमंत्री ने बाबरी मस्जिद बिध्वंस को लेकर एक जांच आयोग गठित की जिसे तीन महीने के भीतर अपना फैसला सुनाना था । लेकिन सवाल यहां है कि आखिर आयोग फैसला क्यो नही सुना पाया। आयोग का 48 बार कायॻकाल बढ़ा लगभग 9 करोड़ रूपये खचॻ हुए । देश के करोड़ो लोगो का दिल आयोग की रिपोटॻ पर टिका रहा । फिर रिपोटॻ आने में इतने साल लग गए तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है । सरकार सरकारी महकमा या या सरकार की गठित आयोग ?

अपने देश में आयोग बैठाने का एक सिलसिला रहा है । इंदिरा गांधी की हत्या हुई जांच आयोग बैठा दिया गया । हत्या के बाद देश भर में सिक्ख दंगे हुए । दस-दस आयोग गठित किए गए । मारवाह आयोग ,आहुजा आयोग न जाने कितने आयोग का फैसला आना शेष ही रह गया लेकिन आखिरकार क्या हुआ । उस आयोग का क्या हुआ जिससे सिक्ख दंगो में मारे गए लोगो के परिवार वालों को न्याय मिलना था । आयोग या सरकार को नही लगता है कि इसके बाद भी लोगो की आस इस पर टिकी हुई है । ददॻ अभी भी जिन्दा है । टीस अभी भी बाकी है । जिसका नजारा देखने को मिलता भी है । अपने को खोने का गम किसे नही है । आयोग तो सुकून देने के लिए गठित हुआ है । आस तो वहा से भी खत्म हो चुकी है ।

राजीव गांधी की हत्या के बाद जैन आयोग बना, कितने साल में फैसले आए । और फैसले के बाद उस फैसले पर कितना अमल हुआ। न्याय मिला दोषियो को सजा मिली । नही मिली तो जिम्मेदार कौन ? आज भी लोगो को इसका इंतजार है । अगर आयोग गठित हो जाता है फैसले आ जाते है अमल नही होता है । फिर ऐसे आयोग की क्या प्रासंगिकता है । यही सवाल आज लिब्राहन आयोग के भी सामने है ? जिसका जबाब जस्टिस लिब्राहन को अवश्य देना चाहिए।

गुजरात में 27 फरवरी 2002 को गोधरा कांड में मारे गए लोगो को न्याय दिलाने के लिए ॽीकृष्ण आयोग का गठन किया गया । उस आयोग का क्या हुआ । उसके बाद नानावती आयोग भी गठित हुआ उसका क्या हुआ । गुजरात में हुए इस हत्याकांड में मारे गए लोगो को न्याय अभी तक मिला । कोटॻ अपने फैसले में इसकी सुनवाई गुजरात में करा रही है । फिर उस फैसले में क्या आएगा शायद सभी को पता है ।ाआपको नही लगता है कि इस तरह के आयोग को गठित किये जाने के बाद एक आयोग इसकी प्रासंगिकता पर भी उठाना चाहिए जो यह जांच करे कि आयोग ्अपना फैसला क्यो नही सुना पाता है ।

17 साल के बाद आये फैसले को आप कितना उचित मानते है । आपको नही लगता है कि यह देश की जनता के साथ यह रिपोटॻ एक छलाबा है । सवाल यही खत्म नही होता है । आयोग को इतने कायॻकाल बढा़ने की अनुमित किसने दी । अगर आयोग ने अपनी रिपोटॻ तीन महीने में नही दे पाई तो इसके लिए अलग से आयोग का गठन भी किया जा सकता था । फिर लिब्राहन पर ही विश्वास क्यो रखा गया । यही सवाल आयोग और व्यवस्था से भी उठता है । सतरह साल तक दिल थाम कर अपने न्याय की आस में बैठे लोगो के ददॻ को न ही सरकार ने समझा और न ही आयोग । तभी तो विश्वसनीयता संदेह के घेरे में है ।

Wednesday, July 1, 2009

मानसून की पहली बारिस

सोमवार को जब बदरा दिल्ली पहुंची तो लोग भीगने के लिए भाग निकले । कुछ ने इंडिया गेट की और रूख किया तो कुछ ने मदमस्त मौसम में राजपथ पर भीगीं आनंद लेने उतर आएं । लेकिन मौसम का यह मदमस्त खेल कुछ देर तक ही चला । बदरा अपने धर चली गई हां मौसम सुहाना जरूर बना कर चली गयी । लोगो ने एक बार फिर इंतजार के लिए दिल थाम लिया ।

पहली घमर की बारिस में लोगो को लगा कि यह तो केवल इंडिया गेट पर ही बरसी तो लोगो के दिल में बदरा के लिए काफी शिकायते भी रही । किसी ने मानसून को कोसा तो किसी ने किसी ने बिन मानसून की दस्तक के बारिस की दुहाई दी । लेकिन यह दुहाई और बदमिजाजी की शिकायत कुछ घंटे ही रही । जब दस पन्दॺह घंटे के बाद ही दिल्ली में मानसून ने दस्तक दे दी ।

मानसून के आते ही दिल्ली और एनसीआर में काले बादल घुमड़ने लगे,तेज हवाएं जोर देकर चलने लगी ,और झमाझम बारिश होने लगी । मंगलवार के दिन जब सुवह ने आंखे खोली तो झमाझम बारिश और ठंढ़ी हवाओं ने उनका खुलकर स्वागत किया । फिर खुशनुमा बन गया था । लोगो को लगा कि मानसून की पहली बारिस ही बहार लेकर आयी है ।

दिन खुली तो लोग एक बार फिर गमीॻ से बेहाल रहे । धूप तो कम खिली लेकिन बढ़ती उमस ने एक बार फिर मन बेहाल कर दिया । उस तपस से ज्यादा ही हाल बेहाल हो गया । चाय की केन्टिन और पाकोॻ की स्थिति भी कमोवेश ऐसी ही रही । एसी ने मानो कुलर की तरह काम करना शुरू कर दिया । पंखे वाले के लिए तो बात ही निराली रही । गांव के हाथ के पंखे याद आने लगे । इस गमीॻ में गांव के पेड़ तले व्यतीत होनेवाला जीवन ही ज्यादा बेहतर था ।

शाम हुई तो दैनिक गति की तरह फिजाओं ने एक बार फिर रंग बदला । तेज हवाएं चली काली घटाएं उमरने लगी । बारिश बरसने लगी और कुछ इलाकों में तो अच्छी बरस ही गई । मौसम की फिजा बदली तो धरती की प्यास भी बुझी । यही बारिस की बौछार से गांव में किसान खेत की और चल पड़े । धान की खेती की आस एक बार फिर जगी । शहर में लोग गमीॻ से राहत मिलते ही सवेरे ही सो गए । सुवह आंखे खुली तो सबकुछ सुहाना सा था ।

मानसून की पहली फुहार तो झड़ी लेकिन कुछ बदनसीब ऐसे थे जिनके लिए उसने आते-आते बहुत देर कर दी । राजधानी की सड़कों पर कई अभागे लोगो की लाशे मिली । न चोट के निशान न किसी तरह की थकान । फिर लोगो को नही पता कि आखिर इनलोगों ने आंखे क्यो मूंदी । अनुमान यही है कि ये बेचारे गमीॻ के सबसे बुरे दौर का मुकाबला नही कर पाएं । जरूर ये आधा पेट भूखे ,बीमार और बेहद गरीब लोग थे । जिन्हे रास्ते में मुफ्त पानी पिलाने वाली प्याऊ नही मिली । जिन्हे किसी भंडारे का अन्न प्रसाद के रूप में नही मिला । फिर ये अपने अधिकार की मांग करने भी किसी के पास नही जानेवाले है । सच यह है कि उनकी खामोश मौत में भी शोर है ।
शोर है कि आज सरकार सौ दिन के अपने एजेंडे में क्या-क्या पास करगी । वित्त मंत्री के पिटारे में क्या-क्या बंद है । लेकिन यहां तो गमीॻ को सहने की ॿमता है और न ही मानसून की पहली बूंद हलक तक पहुंचने की आशा है । फिर यहां शोर किस बात का है । मुझे नही मालूम कि इंडिया गेट की मौसम की फुहार से मैं कहां पहुंच गया