Friday, January 30, 2009

चांद की फिजा और फिजा का चांद ः हकीकत या फिल्मी फलसफा




ये हकीक़त है...प्यार का फसाना है....दो दिलो को जोड़ने की कहानी है....दो धमोॻ कोे टुकड़े-टुकड़े करने की जुबानी है.....कहते है कि इबादत में खलल डालना ठीक नही, लेकिन ये किस्सा ही ऐसा है कि लैला मजनू ,हीर-रांझा,सोनी-मेहबाल और रोमियो-जुलियट की प्यार भरी कहानी भी अपना वजूद ढ़ूढ़ने लगती है । कभी चांद की फिजा और कभी फिजा काी चांद ....लगता है मानो दोनो एक-दूजे लिए बने है और दोनो के लिए एक पल भी अकेले गुजारना आसान नही । मगर अब लगता है कि चांद को ग्रहण लग गया है और फिजा उसे ढ़ूढ़ने को आसमान तक की उचाई तक जाना चाहती है ।
निदा फाजली ने इस दास्तान को अपने नज्म में बखूबी जिया है ....
मुहब्बत अदाबत वफा वेवफाई
किराये के धर थे बदलते रहे ।
ऐसी कहावते भी निकलती रही है कि इश्क में इंसान एक हद तक गुजर जाता है और प्यार की कहानी बना डालता है ....लेकिन हकीकत में प्यार की ये कहानी,फसाने ही बनकर रह जाते है । न ही समाज और न ही सच्ची जिन्दगी में यह सफल हो पाता है .... अपवाद तो हर जगह है । लेकिन सच्चाई को अपवाद के जुमले से जोड़ा नही जा सकता है ।
प्यार का ये फलसफ़ा हमारी फिल्मी कहानी को जरूर मजबूती देता रहा है...जिसकोे लेकर अमिताभ बच्चन से लेकर राजेश खन्ना जैसे नामचीन कलाकारो ने पदेॻ पर अपनी अदाकारी से लोगो का दिल जीता है । सलीम-जावेद जैसी सरीखी जोड़ी ने भी इसे अपनी कामयाबी का हथियार वनाया और एक से बढ़कर एक कहानी को उकेरा । फिल्म सिलसिला और लावारिस में इस तरह की अदायगी देखने को मिलती है । बाडॻर फिल्म में इसे शरहदों को जोड़ने की एक मिसाल के तौर पर दिखलाया गया है । इसके उलट हकीकत कुछ और है जिसके बगैर जिया भी नही जा सकता है खासकर इसे आम जिन्दगी में अपनाना मुश्किलों से कम नही रहा है ।
चांद और फिजा की कहानी एक नजीर मात्र है । और खबरिया चैनलों के लिए कहानी में टविस्ट मात्र भर है ....जो परत दर परत आती रहती है और मीडिया-मुगल उसे फलसफे में ढ़ालते रहते है । कभी चांद फिजा की रोमांस की बाते ...कभी प्यार में पागल हो जाना... और धमॻ बदलकर शादी कर लेना....फिर चांद का ग्याब हो जाना और खबर आना कि चांद को किसी ने अगुआ कर लिया है....फिर चांद की तरप में फिजा का जहर खा लेना...किसी तरह से एक सफल कहानी की और नही जाता है । इतने देर में तो ख़बर भी नही बन पाती है । आखिर एक ही पल में चांद को क्या हो गया । रात भर में कितनी बाते सामने आ गयी उससे क्या प्रतीत होता है । अब तो चांद के अपने पिता का घर लौटने की भी खबर आने लगी है । ये सब क्या है।
हमारा सभ्य समाज इस तरह के प्यार और इस तरह के संबंध को कभी मजबूती नही दिया है। भले ही कभी-कभी यह हमारे समाज का हिस्सा होता रहा है ....और कभी-कभी तो शरहदों को जोड़ने की कहानी भी सुनने को मिल जाती है । लेकिन इसकी शुरूआत महानगर से होती रही है । महानगरों कीं पश्चिमी सभ्यता के बयार ने इसे हर जगह तक पहुंचाया है । लेकिन क्या वही समाज इस कहानी को टेलीविजन पर देखना चाहता है । अगर नही तो फिर इस तरह की कहानी बनाने की इजाजत क्यो देता है । बड़े घर से ये कहानी आती है और वहीं से फैलकर पूरे समाज और गांव तक जाती है । जिसे समझने की जरूरत है । फिलहाल तो चांद और फिजा के बारे में यही कहा जा सकता है कि ये इश्क नही आसां ।

Monday, January 19, 2009

अपराजेय है फिलिस्तीनी जनता का प्रतिरोध

लिखने तक इजराइल ने युध्द विराम की घोषणा कर दी है । उसके कुछ ही घंटे बाद हमास ने भी संघषॻविराम का ऐलान कर दिया है । 27 दिसम्बर से इजराइली सेना ने गाजा पट्टी पर हमला कर फिलिस्तीनीयों का नरसंहार शुरू किया था । ख़बरों के आने तक लगभग 1100 फिलिस्तीनी मारे गएऔर 3000 की संख्या में घायल हो गये है । कहने की ज़रूरत नही है कि इजराइल इस तरह के हमले अक्सर जारी रखता है ...और अमानवीयता और बबॻरता की मिशाल कायम करता है । सारा खेल अमेरिका के इशारे पर और उसके दिए उन्नत हथियारो के जरिये होता है ...जिसका सबसे बड़ा निशाना अरब देश फिलिस्तीन है ...जो अपने मुक्ति और एक राष्टॺ के रूप में अपने अस्तित्व के लिए लगभग 60 वषोॻ से संघषॻ कर रहा है । फिलिस्तीनी जनता के बहादुराना संघषॻ को इजराइली के उन्नत हथियारो से कुचला नही जा सकता ....पिछले साठ दशक से तो यही देखा जा रहा है ...जितना बबॻर इजराइली हमला होता है फिलिस्तीनी जनता का प्रतिरोध उतना ही ताकतवर होता चला जाता है ...हमास और संगठित और शक्तिशाली दिखाई देता है... नवीनतम हमले से तो यही सावित हो रहा है ।
बहस छिड़ने से पहले ज़रूरी है कि इस हमले का कारण जाने । ऐसे तो दुनिया की मीडिया यही दिखा रही है कि हमास के राॅकेट से हमले के कारण इजराइल ने फिलिस्तीन पर हमला किया है लेकिन कुछ तात्कालिक और कुध दूरगामी कारण है जिससे शायद जानना जरूरी है । तात्कालिक कारण यह है कि 5 नवम्बर को इजराइली सेना ने गाजा में पांच हमास के कायॻकत्ताओं को पकड़ा और हत्या कर दी । उसके बाद गाजा पट्टी में बुनियादी वस्तुओं की आपूत्तिॻ की लाइनों को काटना शुरू कर दिया जिसके कारण पूरे गाजा में हालात बेहद खराब होने लगे । जिससे ऊब कर हमास ने इजराइल पर हमला करना शुरू किया । दुरगामी घटना 2005 की है । 2005 में इजराइल को गाजा पट्टी से अपना सेना हटाकर उसे फिलिस्तीनीओं के हवाले करना पड़ा । इसके दो कारण थे पहला था फिलिस्तीनी जनता का वीरता भराे संघषॻ और दूसरा कारण था इजराइल के शासक वगॻ का दो हिस्सो में बॅट जाना । एक धड़ा इजराइल के साथ युध्द को जारी रखना चाहता था और दूसरा हिस्सा समझौता करने के पॿ में था जो धड़ा इजराइली जनता की नुमाइदगी कर रहा था वह जनता इस संघषॻ से ऊब चुकी थी ...इजराइल का यह तबका डर और आतंक के साये तले जी रहा था और इससे मुक्ति चाह रहा था । बात फिर दोहरा रहा हूं कि पांच दशक के युध्द के बाबजूद फिलिस्तीन के अस्तित्व को कुचला नही जा सकता इसके लिए चाहे कितनी भी ताकत इजराइल या अमेरिका लगा ले । फिलिस्तीन जनता का संघषॻ अमर है और अमर रहेगा ।
असल में इजराइल को बसाये जाने और फिलिस्तीनीयों को उस जमीन से खदेड़े जाने का इतिहास सन 1948 से है । जब फिलिस्तीन को खदेड़ कर इजराइल देश अस्तित्व में आया ...और उसे गाजा में जाकर धकेल दिया । फलिस्तिनीयों को अपनी मूल भूमि से खदेड़े जाने का गम आज भी है जिसको लेकर संधषॻ है । यह सच है कि इजराइल के अस्तित्व के इतने वषॻ बीत जाने के बाद उसे खत्म नही किया जा सकता लेकिन उतना भी बड़ा सच यह है कि फिलिस्तीन एक वास्तविकता है जिसे अमेरिकी साम्राज्यवाद अपने हितो के मद्देनजर मान्यता नही देता और उसका दमन जारी रखता है । फिलिस्तीन का विजय अमेरिका और अरब दोनो देशों की जनता के बीच मुकाबले का सवाल है जिसकी वजह से समस्या का समाधान नही हो पा रहा है । इसका समाधान क्या हो सकता है यह एक अलग चचाॻ का विषय है ।
अब सवाल यह है कि क्या हमास को कोई इजराइली हमला खत्म कर सकता है । तमाम विश्लेषको को कहना है कि इजरायली हमले में वो ताकत नही है कि वह हमास को खत्म कर सके । हमास के पीछे फलिस्तीनी जनता की एक फौज खड़ी है ...साथ ही दुनिया को यह मालूम है कि फलिस्तीन,लेबनान और इराक ऐसे देश है जहां की जनता सेक्युलर विचार रखती है और आधुनिक है । जिसकी वजह है कि हमास अमेरिकी साम्राज्यवाद और इजराइल के सामने मजबूती से डटा हुआ है ।
उत्तर यह भी है कि पूरी फिलिस्तीनी जनता को विश्व से समाप्त कर देना इजराइल की औकात के बाहर है । ऐसे में पूरे अरब में उसके और अमेरिकी दमन के खिलाफ वगाबत का ऐसा तूफान खड़ा हो जाएगा जो उन्हे मध्य-पूवॻ की जमीन से नेस्तनाबूद कर देगा । चूकि विश्व समुदाय में भी तमाम धूरिया सक्रिय है और उसके आपसी अंतॻविरोध है इसलिए ऐसे विद्रोह से निपट पाना अमेरिका और उसके भाड़े के टट्टू इजरायल के लिए नामुमकिन है । अगर कल्पना करे कि हमास को इजराइल खत्म कर देता है तब भी फलिस्तीनी जनता का प्रतिरोध कम नही होगा क्योकि जब हमास नही था तब भी फलिस्तीनी जनता लड़ रही थी और जब हमास खत्म हो जाएगा तो उससे भी ताकतवर संगठन उसकी जगह ले लेगा जैसा कि इतिहास दुहराता है । यही कहा जा सकता है कि फिलिस्तीन नामक सत्य को मिटाया नही सकता । अगर अमेरिका और इजरायल को अमन और चैन से जीना है तो उसे फिलिस्तीन को कुबूल करना ही होगा । नही तो आज हमास है कल और कोई रेडिकल तैयार होकर उनकी नींद ले उड़ेगा । नील गगन में उड़ने वाली आजाद चिड़ियां गुलामी की जंजीर कभी पसंद नही करती ,उसे तो खुला आसमान चाहिए । इस सच को विश्व समुदाय और अमेरिका इजरायल को समझना ही होगा । गुलामी की बेड़ी को कभी फिलिस्तीन पसंद नही कर सकता और न ही उसके प्रतिरोध को दुनिया की कोई ताकत दबा सकती है । उनका संघषॻ अमर है और एक सीख भी ।

Wednesday, January 14, 2009

सत्यम के बहाने आम लोगो के ददॆ को समझने की कोशिश

हैदराबाद की मशहूर कम्पनी सत्यम ने जो जालसाजी और ठगी का खेल दिखाया है उससे यह सावित हो गया है कि हमारे देश में भागवत गीता पर हाथ रखकर झूठ ुउगलवाने की जो प्रथा चल रही है उसमें कितनी सच्चाई है । मुझे नही लगता है कि गीता पर हाथ रखकर जो बोला जाता है उसमें दस प्रतिशत भी सच्चाई का अंश होताी है । खैर,मसला सत्यम का है जिसने एक चीज तो अवश्य सावित कर दिया है कि इस देश में सफेदपोश लोगो के लिए कोई बन्दीश और जेल की कालकोठरी नही होती,और न ही उसके दिल में सलाखों के पीछे होनेवाले यानताओं का कोई डर होता है । िसत्यम के संस्थापक राजू साहब के मामलें में यही इतिहास दोहराया जा रहा है । आम लोगो के निवेश उड़ गए ...राजू साहब माला माल हो गए ...लोकतंत्र होने का ददॻ तो गरीब लोगो को ही उठाना पड़ता है ।
अपने देश में ग़रीब लोगों के खिलाफ सबकुछ जायज है । अभी हाल ही में तो बीएमडब्लू कांड का फैसला सामने आया था जिसमें इस सच्चाई का खुलासा हुआ कि कैसे एक अमीर रईसजादे के बच्चे रात में शराब पीकर कार चलाते है और गरीबों और पटरी पर सो रहे लोगों को कुचलकर चले जाते है ,इसके बाबजूद अपना जुमॻ कुबूल नही करते है । संजीब नंदा का बयान और उसके उधोगपति पिता का इस मामलें में दखलअंदाजी किसी से छुपा नही है । उपहार कांड में 13 जून 1997 में बाडॻर फिल्म रिलीज का दिन भी लोगों के जेहन से हटा नही होगा ...इस कांड में कितने लोगो ने अपने जीवन की आखिरी फिल्म देखी ...इसमें जो फैसला आया वह भी लोगों से छुपा नही है और न ही अंसल बंधुओं का चरित्र ही लोगो से शायद छुपा होगा । आखिरकार उस मौत के लिए क्या हुआ और दोषियों को कितनी सजा मिली,आज भी अनसुलझी पहेली बनी हुई है । क्योकिं मरने वाले सारे लोग गरीब तबके के थे ...अंसल बंधुओं के उंची कद के आगे ये लोग बौने सावित हुए ....और सच को धोखा देती झूठ एक बार फिर जीत गई और सच हमेशा की तरह हार हुई ।
हषॻद मेहता और केतन पारीख जैसे महारथी ने कई हजार करोड़ रूपये का घोटाला कर लाखो लोगो को चूना लगा चुके है । असलियत यह है कि जितना बड़ा जालसाजी या फरेब होता है अपराधी उतनी ही तेजी से बाहर निकल जाता है और मुक्त भी हो जाता है । आम लोगो ंके हाथ में कुछ नही रह जाता है । इस तरह की कई घटनाए देश में होती रहती है और आम जनता इस चक्की में पिसते चले जाते है । राजू के सफरनामें में भी ऐसा ही लगता है । कभी आईटी कम्पनी के होनहार मानेवाले राजू बिल क्लिंटन तक के साथ मंच पर साथ नजर आए है ....राजनीतिक रसूख में वे प्रधानमंत्री तक की पहुंच रखते है...जैसा कि राजीव गांधी की मृत्यु के पश्चात जब नरसिंह राव देश के प्रधानमंत्री बने तो यह सच उजागर हुआ कि राजू के संबंध वहां तक थे । इसी राजनीतिक विरासत से आगे बढ़ने वाले राजू ने फिर पीछे मुड़कर नही देखा । और हर उंचाई को छुआ ।
लेकिन सत्यम कम्पनी में जो हुआ उसके बारे में किसी को कोई अन्देशा नही था । विशेषॾ भले इसे आथिॻक आतंकवाद करार दे रहे हों लेकिन सच्चाई यह है कि ेइस चक्की में पिसे जाने का डर किसी को नही ोहै । क्योकि आम जनता ही इसमें पिसी जाएगी । राजू किसी न किसी तरह बाहर आ जाएगे ...गीता की कसम खाकर वे सच्चाई का बखान भी कर देगे । लेकिन एक प्रश्न जो बार-बार जेहन में हिलकोरे मारता है कि आखिर सरकार का ये रवैया आम जनता के लिए क्यों है । सरकार पहले से चेत जाती तो इस तरह का कारनामा नही होता । हर घटना होने के पश्चात सच्चाई की खोज क्यो की जाती है । लगता नही है कि अब इस देश में सत्यमेव जयते का कोई अथॻ रह गया है ।

Monday, January 5, 2009

दिल्ली में कड़ाके के ठंढ़ के बीच चलती जिन्दगी

दिल्ली समेत देश के अन्य राज्यो में शीतलहर का कहर जारी है.....ठंढ़ और उसमें कोहरे के साथ चलते मंद पवन देवता भी लगता है कि ज़िगर में छेद करने आये है....मंद मुस्कान बिखेरती ये हल्की हवा बेवजह दांतों और पैरों को थिरकाने लगती है । सुवह के वक्त तो धुंध भी लगता है उसके साथ भाईचारा निभाने साथ खड़ा हो जाता है...सुवह के समय जल्द तैयार होने की जल्दी होती है...उसके लिए जल्द स्नान करना और आॅफिस के लिए तैयार हो जाना और भी ज़रूरी हो जाता है । यूं ही आजकल बाॅस आॅफिस लेट पहुंचने के ताने देते रहते है ....और काम पूरा नही होने की बात होती रहती है । थोड़ा देर हो जाने पर बाॅस की मुबाइल की घंटी बस में कोलाहल मचाना शुरू कर देता है । दुसरी और ये धुंध है जो थमने का नाम ही नही ले रहा है । सुवह के समय तो ये धुंध और हल्का अंधेरा कोट-पेंट वाले के अंदर भी सिहरने पैदा कर देता है । ख़ासकर आॅफिस जाने के वक़्त तो इसकी चचाॻेए-आम होती है । लोग-बाग आफिस लेट होने की दुहाई कोहरे को देते रहते है....कोई समय पर जग नही पाने का राग अलापता है तो कोई धुंध और ठंढ़ के कारण आलस्य को दुहाई देता है । आलम यही होता है कि सदॻ अपनी जगह हर लोगो के जेहन में बनाए ंरखती है और चचाॻ समाप्त होते-होते आॅफिस की डगर सामने दस्तक देने लगता है । लोग-बाग अपनी ड्यूटि निभाने और अपना काम पूरा करने में सब कुछ भूल जाते है...सिलसिला आजकल हर दिन जारी है ।
दरअसल ये दस्तूर उनके लिए जारी है जिनके पास सारा कुछ है ...पहनने के लिए अच्छे गमॻकपड़े है । कोटॻ,पेंट और टाई के बीच पवन देव को भी शरीर के भीतर जगह बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है । फिर भी मौसम की मार और बदलते मिज़ाज की हर जगह गुफ्तगू है ...लेकिन वे बेख़बर है ...जिनके लिए न तो पहनने के लिए गमॻ कपड़े है न ओढ़ने के लिए गमॻ चादर ....सड़क के फुटपाथ पर आज भी जिन्दगी की शुरूआत होती है और भोर होने के साथ-साथ रात भी अपनी शबाब के साथ समाप्त हो जाती है.... और ये लोग वहीं के वही रह जाते है । इनके सर पर न तो कोई छत है न ही कोई जमीन ...इनके लिए तो सड़क के किनारे बने फुटपाथ ही खूबसूरत जगह है । अपनी लाचारी के मारे ये दूर के राज्यो से रोजी-रोटी की जुगार में यहां आये है । इन्हे क्या पता है कि इनके लिए यहां के हालात उतने आसान नही है ...यहां भी पहले मशक्कत करनी पड़ती है । बेचारे को नही मालूम है कि मंदी भी कोई चीज होती है । ये तो हालात के मारे यहां पहुंचे है बरना गांव में तो ये मालिक की भी बात नही मानते थे अनाज कम होने पर ही उनके खेतो में काम करने जाते थे । पूरी तरह स्वतंत्र और आजाद थे ॥लेकिन आज हालात ने इस कदर ठोकर मारी है कि शहर के छोटे मकान भी मयस्सर नही है । चांद पर हम पताका लहराने पहुंचे है ...लेकिन क्या पता कि चांद पर लगा धव्वा क्या इन्ही लोगो की वजह से लगा है सोचने और जानने की जरूरत है । ऐसे में चांद के क्या मायने है...जब अपना हर रोज साथ निभाने वाला ही चांद उदास है । पहले इस चांद के मुंह में निवाला डालने का प्रयास होना चाहिए । ठंढ़ तो उनके लिए है जिसके पास तन ढ़कने को कपड़े है और रूम में जलाने के लिए रूम हीटर है...और चलती गाड़ी में एसी लगी है...यहां का सारा काम प्रकृति के नही मालिक के मनमाफिक चलता है । लेकिन यहां तो सदॻ को दूर करने के लिए मुट्ठी ही काफी है । इन गरीवो ने अपनी मुट्ठी में ही ठंढ़ को कैद कर रखा है । इस व्यवस्था को पाटने की जरूरत है ।