Friday, December 19, 2008

अपनी इज्जत पर लगी चोट नासूर की तरह होती है

२६ नवम्बर के फियादीन हमलों ने देश की धड़कन मुम्बई को हिला दिया । देश में रफ्तार और तेज जिन्दगी पकड़ने के लिए मशहूर मुम्बई थोड़े समय के लिए ज़रूर थम गई । इस बार आतंकी ताकतो ने मुम्बई की शान माने जाने वाली ताज और नरीमन होटल पर हमला किया । जो मुम्बई में अपनी वैभवता के लिए जाना जाता है यू कहें कि मुम्बई की शान का प्रतीक माना जाता है । हमला तो शिवाजी टमिनल पर भी किया गया जहां लगभग ५६ सामान्य या यूं कहे कि दूर देश-प्रदेश कमाने वाले अधिकांश लोगो की मौत हुई । लेकिन ताज होटल में जो हत्या की गई उसमें देश के नामी गिरामी उधोगपति,पत्रकार,खिलाड़ी के ठहरने का प्रबंध होता है । जो देश की जान और शान माने जाते है । देश का दिल उसी के दिल से धड़कता है या मानो देश को गति के लिए संजीवनी मिलती है । मसलन मुम्बई में हुए इस हमले को खूब तूल दिया गया । टेलीविजन से लेकर अखबार तक के मीडिया मुगल ने कलमनसीबी का जोरदार मुजाहिरा किया । शायद अभी तक नामी-गिरामी लेखक मुम्बई में हुए हमले को पचा नही पा रहे है । एक बात तो सच है कि इस हमले ने यहां के शख्सियत को अंदर से हिला कर रख दिया है । इसलिए इस शहर के ब्रांड से लेकर फिल्मी कलाकार तक इस हमले का विरोध करने सामने आए । खुद शतकवीर सचिन तेंदुलकर ने अपने ४१वे शतक को मुम्बई में हुए हमलों के शहीद और पीडीत परिवारो के नाम किया । आम जनता का विरोध भी इस कदर हुआ कि शिवराज पाटिल और महाराष्ट सरकार तक को जाना पड़ा । लोग काफी संख्या में विभिन्न तरीके से विरोध किया चाहे मुमबत्ती जलाकर हो या अन्य माध्यम से लोगो ने अपना गुस्सा उताड़ा । लेकिन इस गुस्से में एक बात साफ दिख रही थी कि इस तरह का विरोध मुम्बई पर हुए हमलो के कारण हुआ । क्योंकि इसमें देश के बड़े आदमी की जाने गई थी । क्योकि शिवाजी टमिनल पर ५६ लोगो की हत्या को उतना तरजीह नही दिया गया था । बाद में इस घटनाओ को चैनल ने दिखाना शुरू किया । मामला जो हो इस हमले ने देश के सामने कई सवाल खड़े किए । देश में कहीं भी लोग अपने को महफूज नही मान कर चल रहे है । खास कर मुख्य स्थल पर ठहरना उचित तक नही है । महानगरो में लोग सर में कफन बांध कर जी रहे है । अमिताभ बच्चन अपने तकिये के नीचे पिस्टल लेकर सोते है । फिर यह हमले यह सवाल खड़ा करता है कि आखिर चुक कहां से हो जाती है । क्यो आतंकी के मंसूबे सफल हो जाते है और हमारी खुफिया बाद में जांच का नाम लेकर अपना पल्ला झाड़ लेती है दशहतगदॆ अपने मकसद में कामयाब हो जाते है और हम हाथ पर हाथ घरकर बैठे रह जाते है । सुरछा के नाम पर बीआईपी का नाम लिया जाता है । बीआपी के लिए जितनी सेना लगी है उससे देश में अन्य हिस्सो को सुरछित किया जा सकता है ।५००००० सेना में लगभग १००००० सेना वीआईपी को बचाने में लगा रहता है । लेकिन फिर भी ये महफूज नही है । इसलिए तो मुम्बई में इतने बड़े नारे और भीड़ जमा हो रही है आखिर शान और शोहरत पर चोट लगी है ।

7 comments:

Manish Kumar said...

आम नागरिकों के बढ़ते दबाव के कारण सरकार कुछ कदम उठाने पर विवश हुई है। इस घटना की पुनरावृति ना हो इस लिए ये दबाव बनाए रखना होगा।

रवीन्द्र प्रभात said...

ati sundar, sachmuch kadavaa sach padosaa hai aapane, badhaayeeyaan !

रंजना said...

बात तो सही है आपकी. आम जनता की मौत का हिसाब रखता कौन है ?यह पहली बार तो नही कि इतनी संख्या में लोग हताहत हुए किसी आतंकवादी घटना में.........शायद आतंकवादी जानते थे कि आमजनों को मारकर वे इतनी बड़ी सुर्खियाँ नही बटोर सकते,बहुत बड़ा असर नही छोड़ सकते ,इसलिए उन्होंने नाक पर चोट की.

सुरेन्द्र Verma said...

Dheeraj Ji

Aap Naukari dundhane DELHI Jaroor Aaye Delhi mein Swagat hai. Ishwar aapko safalta de.
Kya aapko nahi lagata kee Bihar Mein ye log Apna POCKET garm kar rahe aur Aam Janata ka shoshan.

मधुकर राजपूत said...

घटना का ठीक ब्यौरा दिया आपने। कुछ और रिसर्च करके लिखते तो सॉलिड लेख होता। अच्छा प्रयास। सतत् परिश्रम ही सफलता दिलाएगा। एक गुजारिश वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें।

Fighter Jet said...

My best wishes fro you.One day I was also in Delhi,justlike you.....with dreams of golden future.Never let your inner confidence die...with sustained effort u will surely get what u are aspiring for.

As for the Mumbai incident...the main point is what will the govt do now?

मधुकर राजपूत said...

लगता है बुरी लगी आपको वो बेबाक टिप्पणी, बाजार में ज़िंदा रहने की संजीवनी है टीआरपी। प्रसून जी हों या प्रणव जी सबको चाहिए। मैं प्रसून जी से ये उम्मीद रखता भी नहीं हूं। क्योंकि इस कसौटी पर टी वी पत्रकारिता खरी नहीं है। आपने शायद उस टिप्पणी में अपराधबोध को नहीं भांपा। या फिर अपने ईष्ट प्रसून में इतना खो गए कि मेरी टिप्पणी उन पर प्रहार लगी आपको। पेशे में आ जाओ तो मजबूरियां समझने लगोगे। बाहर से पत्रकारिता की दुनिया बड़ी उजली लगती है।