Tuesday, February 17, 2009

जब चुनाव आयोग की अस्मिता ही खतरे में हो


भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है.....और यह पिछले साठ साल से सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का तमगा लेकर जी रहा है । लोकतंत्र को बनाए रखने और उसकी सेहत को मजबूत बनाए रखने के लिए जरूरी है कि आम जनता चुनाव में अधिक से अधिक संख्या में हिस्सा ले....और सरकार के गठन में अपनी समुचित भागीदारी तय करे । चुनाव में लोगो की भागेदारी को सुनिश्चित कराने के लिए तथा राजनीतिक दलो का चुनाव में पारदशिॻता बरतने के लिए चुनाव आयोग का गठन संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत 25 जनवरी 1950 को किया गया था । जो एक संविधानिक संस्था है जिसपर लोकसभा,राज्यसभा,विधानसभा,राष्टॺपति और उपराष्टॺपति तक के निवाॻचन की जिम्मेवारी होती है । साथ ही लोगो के बीच विश्वास बहाली के लिए साफ-सुथरा और स्वच्छ मतदान कराना भी आयोग का एक महत्वपूणॻ कत्तॻव्य होता है । संविधान की इसी प्रक्रिया के तहत सुकुमार सेन 21 माचॻ 1950 को पहले निवाॻचन आयोग नियुक्त किए गए और 1958 तक अपने पद पर बने रहे ।
सुकुमार सेन के बाद भी इस संविधानिक पद की गरिमा को संविधानिक प्रक्रिया के तहत सुसोभित किया जाता रहा ....और यह एक स्वतंत्र और निष्पॿ संस्था बनी रही । चुनाव से लेकर सभी मापदंडों में अपने पद का निवाॻह करती रही....इस पर न ही किसी तरह के आरोप लगे और न ही किसी तरह के गलत रवैये की शिकायत कही से की गई तात्पयॻ इसने अपने मद और मयाॻदा को कायम रखा । यह कवायद सन 1989 तक चलती रही....और देश में चुनाव आयोग के रूप में एक मुख्य चुनाव आयुक्त का गठन होता रहा ।
नब्बे के दशक से चुनाव आयोग के मामले में राजनीतिक पाटिॻयों ने दखल देना शुरू कर दिया ....मुख्य चुनाव आयोग के साथ दो और चुनाव आयुक्त का गठन किया जाने लगा । उसके बाद के समय में 12 दिसम्बर 1990 को टी।एन शेषण जैसा चुनाव आयुक्त देश को मिला जिसने इस पद और गरिमा को और आगे बढ़ाया । इससे अलग उसने आयोग में कई सुधार और मतदान संबंधी कई महत्वपूणॻ कदम भी उठाए । देश में पहली बार लोगो को आयुक्त के अधिकार और शक्ति का एहसास हुआा लेकिन राजनीतिक दलों की हिस्सेदारी ने इसे कमजोर करना प्रारंभ कर दिया और संसद में एक नए कानून लाकर 1993 में मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो अन्य आयुक्त के गठन का बिल संसद में पास कर दिया ।यह आयोग में राजनीतिक दखल और इसे कमजोर करने का एक अभिनव प्रयास था
अब राजनीति का प्रवेश इस कदर हो चुका है कि नवीन चावला और गोपालस्वामी के विवाद से समझा जा सकता है । नवीन चावला पर जहां कांग्रेस का सहयोगी होने और उसकी तजॻ पर चलने का आरोप लगता रहा है वही गोपालस्वामी भाजपा के शासनकाल में लालकृष्ण आडवाणी के गृहमंत्री के काल में सचिव के पद पर नियुक्त थे....और काफी सेवा दे चुके है । फिर तो दोनो का सियासी मामला साफ दिखाई दे रहा है । नवीव चावला को हटाने की मांग भाजपा काफी समय से कर रही है ....और वचाव में यूपीए सरकार के कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज तक आगे आ गए । फिर दोनो के मामलों से दिखता है कि दूध के घुले कोई भी नही है.....। फिर गोपालस्वामी ने चावला को हटाने की सिफारिश भी सरकार क सामने रख डाली । ताजा विवाद से जो मामला सामने आया उससे तो लगता है कि आयोग की अस्मिता ही अब खतरे में है । जब ऐसे पदों पर बने लोग भी इस तरह का विवाद खड़ा करने लगे तो चिंता की लकीर देश के सामने खींची जा सकती है । फिर जब लोकसभा का चुनाव दरवाजे पर दस्तक देनेवाली है वैसी स्थिति में आयोग का यह झगड़ा हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कितना मजबूती दे पाएगा यह सोचने का विवश करने लगा है । इससे भी ज्यादा जरूरी तो यह है कि जब आयोग एक साथ मिल जुल कर काम नही करेगंे तो क्या देश एक स्वच्छ मतदान की आस देख सकता है .... जब व्यवस्था को देखकर आंखो में आसू आ जाए तो उसके परिणाम के आने का कितना इंतजार किया जा सकता है .....फिलहाल तो दोनो आयुक्तो के बीच जंग जारी है ।

12 comments:

Dr.Bhawna Kunwar said...

जब ऐसे पदों पर बने लोग भी इस तरह का विवाद खड़ा करने लगे तो चिंता की लकीर देश के सामने खींची जा सकती है ।
Bilkul sahi kaha aapne...

Bahut acha laga aapka lekh ...badhai...

bole-bindas said...

Dheeraj ji...mai ek private compny me naukri karta hoon aur nai bhi ptrakarita me ana chahta hoon.......jo mera hamesha se shauk raha hai.......koshish karoonga jald hi apse mulaqat hogi.meri id hai"s.niks009@gmail.com"........apka lekh bahut hi soch-samajh kar likha gaya aisa vivran hai jo beorocrate aur satta ke gadjod ko ujagar karta hai.....bahut sadhuvad......

अमिताभ श्रीवास्तव said...

diraj ji,
shukriya jo aapne mere blog par aakar apni baat kahi, aate rahiyega..
chunav ayukto ke beech ki jang ne is loktantrik kahe jaane vale desh ko kalnkit hi kiya he, ese prakrno par jitna likha jaye kam hi hota he, aapki lekhni me jaan he, likhte rahiyega.meri shubhkamnaye he.

daanish said...

chunaav-aayog ki asmita par aapka
aalekh bahut prabhaavshali hai,
parh kar jaankaari mili aur chinta bhi k rajnaitik paith ke kaaran aayog ki garimaa ghat rahi hai...
jaankaari ke liye aur aapki aamad ka shukriyaa. . . . .
---MUFLIS---

Anonymous said...

chaliye koi to hai jisi khalihaan me dekhaa varnaa aaj to mushik hai kisi ko A/C se baahar dekhe

hem pandey said...

चुनाव आयोग का इतिहास बताने के लिए धन्यवाद. चुनाव आयुक्तों का वर्तमान विवाद हमारे अपरिपक्व लोकतंत्र का एक नमूना है, जिसका वर्णन में अपनी एक पोस्ट में कर चुका हूँ.

sandhyagupta said...

Sahmat hoon aapki baat se.

हरकीरत ' हीर' said...

इससे भी ज्यादा जरूरी तो यह है कि जब आयोग एक साथ मिल जुल कर काम नही करेगंे तो क्या देश एक स्वच्छ मतदान की आस देख सकता है .... जब व्यवस्था को देखकर आंखो में आसू आ जाए तो उसके परिणाम के आने का कितना इंतजार किया जा सकता है ...

Bahut acha laga aapka lekh ...badhai...!!

दिगम्बर नासवा said...

यह राजनीति के पतन का एक और पहलू है, इसकी पराकाष्टा कहाँ तक होगी, देखते जाईये

अनुपम अग्रवाल said...

अच्छा विश्लेषण .
सोचने पर विवश करता हुआ

राजीव करूणानिधि said...

अत्यंत सोच्निये आलेख है आपका. देश की सारी तंत्र भ्रष्ट हो चुकी है. आपकी लेखनी एक उम्मीद जगती है. बधाई.

BrijmohanShrivastava said...

आगे आगे देखिये होता है क्या ?