Wednesday, July 1, 2009

मानसून की पहली बारिस

सोमवार को जब बदरा दिल्ली पहुंची तो लोग भीगने के लिए भाग निकले । कुछ ने इंडिया गेट की और रूख किया तो कुछ ने मदमस्त मौसम में राजपथ पर भीगीं आनंद लेने उतर आएं । लेकिन मौसम का यह मदमस्त खेल कुछ देर तक ही चला । बदरा अपने धर चली गई हां मौसम सुहाना जरूर बना कर चली गयी । लोगो ने एक बार फिर इंतजार के लिए दिल थाम लिया ।

पहली घमर की बारिस में लोगो को लगा कि यह तो केवल इंडिया गेट पर ही बरसी तो लोगो के दिल में बदरा के लिए काफी शिकायते भी रही । किसी ने मानसून को कोसा तो किसी ने किसी ने बिन मानसून की दस्तक के बारिस की दुहाई दी । लेकिन यह दुहाई और बदमिजाजी की शिकायत कुछ घंटे ही रही । जब दस पन्दॺह घंटे के बाद ही दिल्ली में मानसून ने दस्तक दे दी ।

मानसून के आते ही दिल्ली और एनसीआर में काले बादल घुमड़ने लगे,तेज हवाएं जोर देकर चलने लगी ,और झमाझम बारिश होने लगी । मंगलवार के दिन जब सुवह ने आंखे खोली तो झमाझम बारिश और ठंढ़ी हवाओं ने उनका खुलकर स्वागत किया । फिर खुशनुमा बन गया था । लोगो को लगा कि मानसून की पहली बारिस ही बहार लेकर आयी है ।

दिन खुली तो लोग एक बार फिर गमीॻ से बेहाल रहे । धूप तो कम खिली लेकिन बढ़ती उमस ने एक बार फिर मन बेहाल कर दिया । उस तपस से ज्यादा ही हाल बेहाल हो गया । चाय की केन्टिन और पाकोॻ की स्थिति भी कमोवेश ऐसी ही रही । एसी ने मानो कुलर की तरह काम करना शुरू कर दिया । पंखे वाले के लिए तो बात ही निराली रही । गांव के हाथ के पंखे याद आने लगे । इस गमीॻ में गांव के पेड़ तले व्यतीत होनेवाला जीवन ही ज्यादा बेहतर था ।

शाम हुई तो दैनिक गति की तरह फिजाओं ने एक बार फिर रंग बदला । तेज हवाएं चली काली घटाएं उमरने लगी । बारिश बरसने लगी और कुछ इलाकों में तो अच्छी बरस ही गई । मौसम की फिजा बदली तो धरती की प्यास भी बुझी । यही बारिस की बौछार से गांव में किसान खेत की और चल पड़े । धान की खेती की आस एक बार फिर जगी । शहर में लोग गमीॻ से राहत मिलते ही सवेरे ही सो गए । सुवह आंखे खुली तो सबकुछ सुहाना सा था ।

मानसून की पहली फुहार तो झड़ी लेकिन कुछ बदनसीब ऐसे थे जिनके लिए उसने आते-आते बहुत देर कर दी । राजधानी की सड़कों पर कई अभागे लोगो की लाशे मिली । न चोट के निशान न किसी तरह की थकान । फिर लोगो को नही पता कि आखिर इनलोगों ने आंखे क्यो मूंदी । अनुमान यही है कि ये बेचारे गमीॻ के सबसे बुरे दौर का मुकाबला नही कर पाएं । जरूर ये आधा पेट भूखे ,बीमार और बेहद गरीब लोग थे । जिन्हे रास्ते में मुफ्त पानी पिलाने वाली प्याऊ नही मिली । जिन्हे किसी भंडारे का अन्न प्रसाद के रूप में नही मिला । फिर ये अपने अधिकार की मांग करने भी किसी के पास नही जानेवाले है । सच यह है कि उनकी खामोश मौत में भी शोर है ।
शोर है कि आज सरकार सौ दिन के अपने एजेंडे में क्या-क्या पास करगी । वित्त मंत्री के पिटारे में क्या-क्या बंद है । लेकिन यहां तो गमीॻ को सहने की ॿमता है और न ही मानसून की पहली बूंद हलक तक पहुंचने की आशा है । फिर यहां शोर किस बात का है । मुझे नही मालूम कि इंडिया गेट की मौसम की फुहार से मैं कहां पहुंच गया

10 comments:

Urmi said...

वाह बहुत बढ़िया! बारीश का मौसम तो मस्त मस्त है! बस चाय का प्याला और साथ में गरम गरम पकोरे क्या कहने!

sandhyagupta said...

मानसून की पहली फुहार तो झड़ी लेकिन कुछ बदनसीब ऐसे थे जिनके लिए उसने आते-आते बहुत देर कर दी । राजधानी की सड़कों पर कई अभागे लोगो की लाशे मिली । न चोट के निशान न किसी तरह की थकान । फिर लोगो को नही पता कि आखिर इनलोगों ने आंखे क्यो मूंदी । अनुमान यही है कि ये बेचारे गमीॻ के सबसे बुरे दौर का मुकाबला नही कर पाएं । जरूर ये आधा पेट भूखे ,बीमार और बेहद गरीब लोग थे । जिन्हे रास्ते में मुफ्त पानी पिलाने वाली प्याऊ नही मिली । जिन्हे किसी भंडारे का अन्न प्रसाद के रूप में नही मिला । फिर ये अपने अधिकार की मांग करने भी किसी के पास नही जानेवाले है । सच यह है कि उनकी खामोश मौत में भी शोर है ।

Chaliye aakhir zindagi me na sahi maut ke baad to kisi ne inhe yaad kiya.

Harshvardhan said...

dheeraj ji aapke delhi me megh thoda baras to rahe hai parantu yahan to fuhar ke liye waiy karna pad raha hai... post achchi lagi bas likhte rahiye bhai

हरकीरत ' हीर' said...

जी हाँ इस बार तो गर्मी ने हद ही कर दी ....यहाँ भी बुरा हाल है ...मानसून आया भी पर वैसी बारिश नहीं हुई जैसी हमेशा होती है .....संध्या जी ने तो और भी भयंकर विवरण दिया है ......

नीरज गोस्वामी said...

धीरज जी आपके लेखन ने बहुत प्रभावित किया है..आप के पास भाषा और भाव दोनों हैं..बरसात के आगमन और उसके बाद की अच्छी बुरी बातों को क्या खूबसूरती से पिरोया है आपने अपनी इस पोस्ट में की दिल वाह कह उठा है...लिखते रहें.
नीरज

प्रदीप मानोरिया said...

इस बार तो गर्मी ने हद ही कर दी ....यहाँ भी बुरा हाल है ...मानसून आया भी पर वैसी बारिश नहीं हुई जैसी हमेशा होती है

दिगम्बर नासवा said...

मन ऐसे ही उड़ान bharta है............ कभी maansoon की bheeni khushboo और कभी जीवन की kadvi sachaai के beech या फिर आने vaali aashaa के beech...........

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

धीरज जी,
बदलते मौसम पर अच्छा लेख....बहुत बहुत बधाई....

Arvind Kumar said...

aapke likhne ka tareeka bahut hi sral aur umda hai...mujhe vishwas hai ki kal aapke es kala se poora hindustan vakeef hoga....keep it up..

hem pandey said...

अब तो बारिश की फुहार भी डराने लगी है. लगता है कहीं यह फुहार ,फुहार तक ही सीमित न रह जाए, बौछार न बन पाए. अधिकांश क्षेत्र तो अच्छी बारिश के लिए तरस रहे है.