Wednesday, July 15, 2009

आयोग की विश्वसनीयता से उ‌ठते सवाल

लिब्राहन आयोग ने अपनी रिपोटॻ सरकार को सौप दी । रिपोटॻ में जो भी लिखा हो । यह तो संसद पटल पर आने के बाद ही पता चलेगा । अभी तो यही चचाॻ है कि आखिर जस्टिस लिब्राहन ने अपनी रिपोटॻ में किसे बक्शा है और किसे राहत दिया है । राजनीतक सरगमीॻ भी तेज हो चली है । रिपोटॻ के आने और न आने के समय पर भी सवाल उठ रहे है । आखिर बाबरी मस्जिद बिध्वंस के बाद जस्टिस लिब्राहन को यह जिम्मेदारी सौपी गई थी कि वे मामले की सच्चाई को बाहर करे । रिपोटॻ आई और इतने दिनों के बाद आई यही बड़ा सवाल है । जिसके तह में जाने की जरूरत है । और सवाल एक बड़ा सवाल बनकर उभर रही है । आखिर लिब्राहन ने इतने वक्त क्यो लगाएं

लिब्राहन आयोग के मूल में जाने से 6 दिसम्बर 1992 की घटना ताजा हो जाती है । भाजपा और उसके सहयोगी विहिप,बजरंग दल ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया । घटनाएं कैसे आगे बढ़ी और कहां तक पहुंच गई । इसका अंदेशा सभी को था । कल्याण सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे । जो बाबरी मस्जिद बिध्वंस में लालकृष्ण आडवाणी और उमा भारती के साथ अहम भूमिका में थे । उमा भारती आज भी उस दिन की घटना में स्वयं को जिम्मेवार मानती है और आज भी फांसी पर लटकने को तैयार है । भले ही आज कोई उन्हे फांसी पर लटकाने में रूचि नही ले रहा है । केन्दॺ में नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे । इतनी गहरी नींद में सोये थे कि पता नही चला । मस्जिद गिरा दी गई । फिलहाल 6 दिसम्बर के भीतर ज्यादा झांकने की जरूरत नही है । घटनाएं किसी से छिपी नही है ।ी जानकारी सभी को है । कौन दोषी है कौन नही है देश की जनता को मालूम है । लेकिन सवाल तो आयोग से शुरू होता है ।

6 दिसम्बर को मस्जिद ढ़ाह दी गई । 16 दिसम्बर को देश के प्रधानमंत्री ने बाबरी मस्जिद बिध्वंस को लेकर एक जांच आयोग गठित की जिसे तीन महीने के भीतर अपना फैसला सुनाना था । लेकिन सवाल यहां है कि आखिर आयोग फैसला क्यो नही सुना पाया। आयोग का 48 बार कायॻकाल बढ़ा लगभग 9 करोड़ रूपये खचॻ हुए । देश के करोड़ो लोगो का दिल आयोग की रिपोटॻ पर टिका रहा । फिर रिपोटॻ आने में इतने साल लग गए तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है । सरकार सरकारी महकमा या या सरकार की गठित आयोग ?

अपने देश में आयोग बैठाने का एक सिलसिला रहा है । इंदिरा गांधी की हत्या हुई जांच आयोग बैठा दिया गया । हत्या के बाद देश भर में सिक्ख दंगे हुए । दस-दस आयोग गठित किए गए । मारवाह आयोग ,आहुजा आयोग न जाने कितने आयोग का फैसला आना शेष ही रह गया लेकिन आखिरकार क्या हुआ । उस आयोग का क्या हुआ जिससे सिक्ख दंगो में मारे गए लोगो के परिवार वालों को न्याय मिलना था । आयोग या सरकार को नही लगता है कि इसके बाद भी लोगो की आस इस पर टिकी हुई है । ददॻ अभी भी जिन्दा है । टीस अभी भी बाकी है । जिसका नजारा देखने को मिलता भी है । अपने को खोने का गम किसे नही है । आयोग तो सुकून देने के लिए गठित हुआ है । आस तो वहा से भी खत्म हो चुकी है ।

राजीव गांधी की हत्या के बाद जैन आयोग बना, कितने साल में फैसले आए । और फैसले के बाद उस फैसले पर कितना अमल हुआ। न्याय मिला दोषियो को सजा मिली । नही मिली तो जिम्मेदार कौन ? आज भी लोगो को इसका इंतजार है । अगर आयोग गठित हो जाता है फैसले आ जाते है अमल नही होता है । फिर ऐसे आयोग की क्या प्रासंगिकता है । यही सवाल आज लिब्राहन आयोग के भी सामने है ? जिसका जबाब जस्टिस लिब्राहन को अवश्य देना चाहिए।

गुजरात में 27 फरवरी 2002 को गोधरा कांड में मारे गए लोगो को न्याय दिलाने के लिए ॽीकृष्ण आयोग का गठन किया गया । उस आयोग का क्या हुआ । उसके बाद नानावती आयोग भी गठित हुआ उसका क्या हुआ । गुजरात में हुए इस हत्याकांड में मारे गए लोगो को न्याय अभी तक मिला । कोटॻ अपने फैसले में इसकी सुनवाई गुजरात में करा रही है । फिर उस फैसले में क्या आएगा शायद सभी को पता है ।ाआपको नही लगता है कि इस तरह के आयोग को गठित किये जाने के बाद एक आयोग इसकी प्रासंगिकता पर भी उठाना चाहिए जो यह जांच करे कि आयोग ्अपना फैसला क्यो नही सुना पाता है ।

17 साल के बाद आये फैसले को आप कितना उचित मानते है । आपको नही लगता है कि यह देश की जनता के साथ यह रिपोटॻ एक छलाबा है । सवाल यही खत्म नही होता है । आयोग को इतने कायॻकाल बढा़ने की अनुमित किसने दी । अगर आयोग ने अपनी रिपोटॻ तीन महीने में नही दे पाई तो इसके लिए अलग से आयोग का गठन भी किया जा सकता था । फिर लिब्राहन पर ही विश्वास क्यो रखा गया । यही सवाल आयोग और व्यवस्था से भी उठता है । सतरह साल तक दिल थाम कर अपने न्याय की आस में बैठे लोगो के ददॻ को न ही सरकार ने समझा और न ही आयोग । तभी तो विश्वसनीयता संदेह के घेरे में है ।

9 comments:

दिगम्बर नासवा said...

Shuru mein aayog jlti aag mein chente maarni kaa kaam karta hai........fir kuch samay baad vo khaane ka saadhan ban jaata hai........ye sab aayog vaayog baikaar ki baate hain hamaare desh mein

Harshvardhan said...

dekhte hai is report ka kya hasra hota hai? vaise yakeen maniye bharat me abhi tak jitne bhi aayog bane hai wah sahi se jaanch hi nahi kar paaye... sachchayi logo ke saamne nahi aa paati hai in reporto me bhi sarkar apna nafa nuksaan dekhti hai . post achchi lagi.... mai bhi shayad is visay par reporting karu...aajkal ayodhya ko pad raha hu......

BrijmohanShrivastava said...

आपका कहना दुरुस्त है मगर विलंब के लिए विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाना उचित नहीं | किसी आयोग या न्यायाधीश को समय सीमा में न बांध कर जल्द से जल्द रिपोर्ट देने को कहा जा सकता है | जिस प्रकार विलंब से दिया गया न्याय ठीक नहीं उसी प्रकार जल्दबाजी में भी न्याय ठीक नहीं है | विलंब के कई कारण हो सकते है |साधारण मारपीट को तो अदालते होती है लेकिन मसला इतना बड़ा और उलझा हुआ हो वहां दिक्कत तो होती ही है | फलां आयोग में करोडों खर्च हुए बात ही बेमानी है _न्याय, इलाज, आस्था पैसों से नहीं तौली जाती -जब जाँच अधूरी रह जाती है तो समय तो माँगा ही जायेगा अधूरी जांच रिपोर्ट तो नहीं सौपी जा सकती =हां रिपोर्ट आने पर उस पर अमल के वाबत ......?

राज भाटिय़ा said...

हमारे देश मै यह सब चलता है, अंधी पिस रही है ओर कुतिया सब चट कर जाती है... साफ़ सफ़दो मे अंधा कानून है.ओर दिखावा

sandhyagupta said...

Ek aur vicharotezzak lekh.Shubkamnayen.

hem pandey said...

आयोगों की कहानी ऐसी ही है.

रंजन (Ranjan) said...

इतने साल में सब भुल गये.. अब क्या रिपोर्ट और क्या उसकी विश्वस्नीयता..

निर्मला कपिला said...

ऐसे सवाल तो उठते रहने चाहिये आपने बिलकुल सही लिखा है मगर जब तक इस पर कोई देश भर मे सवाल नहीं उठेंगे तब तक कुछ नहीं होगा बहुत विचारणीय आलेख है आभार्

Urmi said...

बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने! पर जब तक इस मुद्दे पर कोई बात न उठाया जाए तब तक कुछ भी नहीं होगा!