अमरनाथ का विवाद ने जम्मू-कश्मीर एक राजनीतिक विसात खरी कर दी । यू कहे कि अमरनाथ मुद्दे की तैयारी काफी दिनो से चल रही थी । केवल मौका नही मिल रहा था कि राजनीतिक बिसात कहां से बिछायी जाये ।जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक हालात कमोवेश हर लोगो के जेहन में होती है । कश्मीर के लिए हम १९४७ से लड़ते आये है । लेकिन यहां हम ताजा विवाद की चचाॆ करना पसंद करेंगे । अमरनाथ गुफा की स्थापना और देखभाल मुसलमान लोगो के हाथो में रही है। २००१ तक अमरनाथ बोड का गठन नही किया गया था । लेकिन २००१ में इसकी स्थापना कर दी गई॥। और विवादो की एक रेखा खीच दी गई।अभी वहां गुलाम नबी आजाद का शासन चल रहा था । इससे पहले समझौके के आधार पर मुफ्ती मोहम्मद की सरकार थी ..।शायद मुफ्ती के बारे में ज्यादा बताना ठीक नही रहेगा । ये वही मुफ्ती है जिनकी बेटी रूबिया को आतंकवादियो ने अपहरण कर लिया था ..उस समय मुफ्ती साहब देश के गृहमंत्री थे । उन्होने बेटी को छुराने के चक्कर में बहुतो आतंकबादियो को छोड़ दिया था ...।जो भी हो ..अभी गुलाम नबी साहब का कायॆकाल उतनी दयनीय स्थिति में नही थी लेकिन चुनाव का वक्त नजदीक आ रहा था । और सभी दल अपनी रोटिया सोकने को तैयार थे । नेसनल कांफ्रेस भी इसी फिराक में थी । मुद्दा था कि मुसलिम वोट तो बंट जाएगे लेकिन हिन्दु वोट जहां जाएगी सरकार वही बनाएगा । हिन्दु वोट के लिए जमीन तराशी जा रही थी । इसी बीच अमरनाथ का विवाद सामने आया ..किसी पाटी ने कसर नही छोड़ी। हर तरह के हथकंडे अपनाए गए । जम्मू और कश्मीर सियासी चोकठ की आग में जलता रहा और राजनीतिक पाटिया आग लगाने में कोई कसर नही छोड़ना चाहते थे । आखिरकार अमरनाथ संघषॆ समिति और सरकार के बीच एक फैसला हुआ और आम सहमति बनी। लेकिन इस लड़ाई ने जम्मू -कश्मीर के बीच एक विभाजक रेखा खड़ी कर दी ।आखिरकार गुलाम नबी साहब को जाना पड़ा ।लेकिन यह विवाद कई सवाल खड़े कर रहे है।
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