लिखने तक इजराइल ने युध्द विराम की घोषणा कर दी है । उसके कुछ ही घंटे बाद हमास ने भी संघषॻविराम का ऐलान कर दिया है । 27 दिसम्बर से इजराइली सेना ने गाजा पट्टी पर हमला कर फिलिस्तीनीयों का नरसंहार शुरू किया था । ख़बरों के आने तक लगभग 1100 फिलिस्तीनी मारे गएऔर 3000 की संख्या में घायल हो गये है । कहने की ज़रूरत नही है कि इजराइल इस तरह के हमले अक्सर जारी रखता है ...और अमानवीयता और बबॻरता की मिशाल कायम करता है । सारा खेल अमेरिका के इशारे पर और उसके दिए उन्नत हथियारो के जरिये होता है ...जिसका सबसे बड़ा निशाना अरब देश फिलिस्तीन है ...जो अपने मुक्ति और एक राष्टॺ के रूप में अपने अस्तित्व के लिए लगभग 60 वषोॻ से संघषॻ कर रहा है । फिलिस्तीनी जनता के बहादुराना संघषॻ को इजराइली के उन्नत हथियारो से कुचला नही जा सकता ....पिछले साठ दशक से तो यही देखा जा रहा है ...जितना बबॻर इजराइली हमला होता है फिलिस्तीनी जनता का प्रतिरोध उतना ही ताकतवर होता चला जाता है ...हमास और संगठित और शक्तिशाली दिखाई देता है... नवीनतम हमले से तो यही सावित हो रहा है ।
बहस छिड़ने से पहले ज़रूरी है कि इस हमले का कारण जाने । ऐसे तो दुनिया की मीडिया यही दिखा रही है कि हमास के राॅकेट से हमले के कारण इजराइल ने फिलिस्तीन पर हमला किया है लेकिन कुछ तात्कालिक और कुध दूरगामी कारण है जिससे शायद जानना जरूरी है । तात्कालिक कारण यह है कि 5 नवम्बर को इजराइली सेना ने गाजा में पांच हमास के कायॻकत्ताओं को पकड़ा और हत्या कर दी । उसके बाद गाजा पट्टी में बुनियादी वस्तुओं की आपूत्तिॻ की लाइनों को काटना शुरू कर दिया जिसके कारण पूरे गाजा में हालात बेहद खराब होने लगे । जिससे ऊब कर हमास ने इजराइल पर हमला करना शुरू किया । दुरगामी घटना 2005 की है । 2005 में इजराइल को गाजा पट्टी से अपना सेना हटाकर उसे फिलिस्तीनीओं के हवाले करना पड़ा । इसके दो कारण थे पहला था फिलिस्तीनी जनता का वीरता भराे संघषॻ और दूसरा कारण था इजराइल के शासक वगॻ का दो हिस्सो में बॅट जाना । एक धड़ा इजराइल के साथ युध्द को जारी रखना चाहता था और दूसरा हिस्सा समझौता करने के पॿ में था जो धड़ा इजराइली जनता की नुमाइदगी कर रहा था वह जनता इस संघषॻ से ऊब चुकी थी ...इजराइल का यह तबका डर और आतंक के साये तले जी रहा था और इससे मुक्ति चाह रहा था । बात फिर दोहरा रहा हूं कि पांच दशक के युध्द के बाबजूद फिलिस्तीन के अस्तित्व को कुचला नही जा सकता इसके लिए चाहे कितनी भी ताकत इजराइल या अमेरिका लगा ले । फिलिस्तीन जनता का संघषॻ अमर है और अमर रहेगा ।
असल में इजराइल को बसाये जाने और फिलिस्तीनीयों को उस जमीन से खदेड़े जाने का इतिहास सन 1948 से है । जब फिलिस्तीन को खदेड़ कर इजराइल देश अस्तित्व में आया ...और उसे गाजा में जाकर धकेल दिया । फलिस्तिनीयों को अपनी मूल भूमि से खदेड़े जाने का गम आज भी है जिसको लेकर संधषॻ है । यह सच है कि इजराइल के अस्तित्व के इतने वषॻ बीत जाने के बाद उसे खत्म नही किया जा सकता लेकिन उतना भी बड़ा सच यह है कि फिलिस्तीन एक वास्तविकता है जिसे अमेरिकी साम्राज्यवाद अपने हितो के मद्देनजर मान्यता नही देता और उसका दमन जारी रखता है । फिलिस्तीन का विजय अमेरिका और अरब दोनो देशों की जनता के बीच मुकाबले का सवाल है जिसकी वजह से समस्या का समाधान नही हो पा रहा है । इसका समाधान क्या हो सकता है यह एक अलग चचाॻ का विषय है ।
अब सवाल यह है कि क्या हमास को कोई इजराइली हमला खत्म कर सकता है । तमाम विश्लेषको को कहना है कि इजरायली हमले में वो ताकत नही है कि वह हमास को खत्म कर सके । हमास के पीछे फलिस्तीनी जनता की एक फौज खड़ी है ...साथ ही दुनिया को यह मालूम है कि फलिस्तीन,लेबनान और इराक ऐसे देश है जहां की जनता सेक्युलर विचार रखती है और आधुनिक है । जिसकी वजह है कि हमास अमेरिकी साम्राज्यवाद और इजराइल के सामने मजबूती से डटा हुआ है ।
उत्तर यह भी है कि पूरी फिलिस्तीनी जनता को विश्व से समाप्त कर देना इजराइल की औकात के बाहर है । ऐसे में पूरे अरब में उसके और अमेरिकी दमन के खिलाफ वगाबत का ऐसा तूफान खड़ा हो जाएगा जो उन्हे मध्य-पूवॻ की जमीन से नेस्तनाबूद कर देगा । चूकि विश्व समुदाय में भी तमाम धूरिया सक्रिय है और उसके आपसी अंतॻविरोध है इसलिए ऐसे विद्रोह से निपट पाना अमेरिका और उसके भाड़े के टट्टू इजरायल के लिए नामुमकिन है । अगर कल्पना करे कि हमास को इजराइल खत्म कर देता है तब भी फलिस्तीनी जनता का प्रतिरोध कम नही होगा क्योकि जब हमास नही था तब भी फलिस्तीनी जनता लड़ रही थी और जब हमास खत्म हो जाएगा तो उससे भी ताकतवर संगठन उसकी जगह ले लेगा जैसा कि इतिहास दुहराता है । यही कहा जा सकता है कि फिलिस्तीन नामक सत्य को मिटाया नही सकता । अगर अमेरिका और इजरायल को अमन और चैन से जीना है तो उसे फिलिस्तीन को कुबूल करना ही होगा । नही तो आज हमास है कल और कोई रेडिकल तैयार होकर उनकी नींद ले उड़ेगा । नील गगन में उड़ने वाली आजाद चिड़ियां गुलामी की जंजीर कभी पसंद नही करती ,उसे तो खुला आसमान चाहिए । इस सच को विश्व समुदाय और अमेरिका इजरायल को समझना ही होगा । गुलामी की बेड़ी को कभी फिलिस्तीन पसंद नही कर सकता और न ही उसके प्रतिरोध को दुनिया की कोई ताकत दबा सकती है । उनका संघषॻ अमर है और एक सीख भी ।
जय श्रीराम
10 years ago
3 comments:
KABILE GAUR HAI...KI ISRAILE NE JAB BHI AAKRAMAK RUKH APNAYA HAI..TAB TAB AMERIKA KA USE PICHE SE SAMARTHAN MILTA RAHA HAI....GALAT KAUN, SAHI KAUN, PAR JIS TARAH SE BEPARWAH HOKAR ISRAILE BAR BAR HIMAKAT KARTA HAI, USASE TO YAHI LAGTA HAI ...UNO KE HONE KA MATLAB KYA HAI? PHILISTINI JANTA KA PRATIRODH JAYAJ HAI YA NAJAYAJ...PAR IS TARAH KE NARSANGHAR SE MANVIY MULYO KA SIRF HANAN HO RAHA HAI..PHILHAL, SAMADHAN YE HARGIJ NAHI HAI...AUR VISW SAMUDAY KA AISE MUDDO PAR GAMBHIR NA HONA, SIRF BAYANBAJI KARNA KISI BHI TARAH SE JAYAJ NAHI THARAYA JA SAKTA HAI..YOO LAGATA HAI JAISE SABHI AIK DUSARE KA CHEHRA MATRA DEKH RAHE HO...
नील गगन में उड़ने वाली आजाद चिड़ियां गुलामी की जंजीर कभी पसंद नही करती ,उसे तो खुला आसमान चाहिए ये लाइन बहुत प्यारी लगी
अपने आलेख के लिए बिल्कुल सही विषय चुना है आपने धीरज. बहुत ही गंभीर मसला है जिसपर गहन विचार की ज़रूरत है. आपने गंभीरता दिखाई है अपने लेख के जरिये, शुभकामना.
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