देश ने आज़ादी के 62 बसंत देखे है....आजादी के बाद हमने दिखला दिया कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र है...लोकतंत्र होंने के तमाम गुण हममे समाहित है...इसके लिए हमने भारतीय संविधान के तमाम अधिकार और कत्तॻव्य का पालन करने का दंभ भरा है । खासकर आजादी और अधिकार के मामले में तो हम किसी से पीछे नही है । अपनी स्वतंत्रता किसे पसंद नही है इसलिए हमने आम जनता की स्वतंत्रता का तमाम ख्याल रखा कि कहीं इसके लिए हाहाकार न मच जाए और विश्व विरादरी के सामने भारत सीना तानकर लोकतंत्र का तमगा लाकर खड़ा रहे । यही सपना हमारे देश के रहनुमा का भी था और उसी को लेकर हम भी जीना चाहते है ।
आज़ादी तो मिल गई....लेकिन शायद अब तक आज़ादी का मायने समझ मे नही आया ।आज़ादी और अधिकार के नाम पर हमने खूब हल्ला मचाया। भागीदारी की बात की...लेकिन आधी आबादी को समान भागीदारी से कोसो दूर रखा । कभी असुरॿा तो कभी कमजोरी को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया । सामाजिक बंधन ने चौकट तक पहुंचने से रोका तो पदेॻ की ओट ने घर के भीतर रहने को मज़बूर किया । चाहरदीवारी ने कहीं मोम की मूत्तिॻ बने रहने को कहा तो रईसी ने कहीं मादकता की बस्तु समझकर दिल बहलाने भर को रहने दिया....कहीं अश्लीलता दम घुंट कर जीने को बेबश किये हुए है....तो कहीं हिंसा और शोषण ने जिस्म की बस्तु बन कर रहने को मजबूर किया है । लेकिन स्वतंत्रता की गूंज सात समुंदर पार तक जाती है ।े
चौदहवी लोकसभा 1738 घंटे तक चली । इसमें 423 घंटे हमने बेबज़ह हंगामे के कारण बबाॻद कर दिया । शेष समय काम में लगाया...अयोग्यता और हिंसा ने यहां भी हमारा पीछा नही छोड़ा।इसके बाबजूद हमने 258 विधेयक इस लोकसभा में पारित हुआ.....जो कानून बनकर तैयार है । पर हमारे सिसायत की त्रासदी यह भी रही है कि संविधान के 73वे और 74वे संशोधन के आधार पर हमने सन 1993 में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरॿण देने का फैसला लिया था । उसके बाद से इस विधेयक पर 46 बार लोकसभा में बहस हो चुकी है....और बहस केवल हंगामा बनकर रह गयी । हर बार हमने महिलाओं के नाम पर तगड़ा बबाल किया....लोकसभा में बहस की परिपाटी ही चला दी । नतीजा सिफर ही निकला ....मलाल सोमदादा को भी रहा जो अब लोकसभा कभी नही आएगें दादा ने भी कहा कि यह हमारे समय का दुभाॻग्य रहा कि हम इस बिल को पास नही करा पाये ।
ये तस्वीर है चौदहवी लोकसभा के परिणाम का । केवल 8 फीसद सांसद लोकसभा में आयी जो देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व कर रही है । न ही राजनीतिक दलों को महिला को सीट देने में दिलचस्पी रहे है और न ही महिलांए इसमें समुचित रूप से हिस्सा ले पा रही है । फिर हर दल में महिला प्रत्याशी का टोटा पड़ा हुआ है । लोकतंत्र का ताना हम खूब बुने....तमगा लगाकर हम खूब जिये लेकिन इस हकीक़त से भी इन्कार नही किया जा सकता है । जिसका ताजा उदाहरण महिला आरॿण बिल है जो आज भी सिसायत के बूटों तले सिसकिया भर रही है ।
सवाल यही खत्म नही होता है....सवाल उठेंगे तो जिम्मेवारी की बात भी होगी । इसके लिए असली रूप में दोषी कौन है । आरोप पुरूष प्रधान समाज के ऊपर लगाया जाता है । लेकिन असली मसला यही खत्म नही होता है । देश के सवोच्च पद पर महिलाएं आसीन है....सोनिया गांधी देश की सबसे ताकतवर महिला है...हैसियत शायद पीएम से भी ज्यादा की रखती है । प्रथम नागरिक की कुसीॻ पर प्रतिभा पाटिल विराजमान है.....तीन राज्य की मुख्यमंत्री महिला है...दिल्ली इससे अलग है इसे मिलाकर चार हो जाती है । और भी ताकतवर महिलाए राजनीति में हैं जो अपनी हैसियत का हवाला देती रही है और अपने को मजबूत कर भी दिखाया है । फिर क्या इन महिलाओं ने महिला विधेयक के लिए कोई बुंलंद आवाज लगाई है । कोई बहस छेड़ा है...किसी आन्दोलन के लिए तैयार हुयी है। अगर नही तो फिर यह आरोप भी निराधार है .... और न ही पुरूषों का हवाला दिया जाना चाहिए । अगर महिलाओं को महिलाओं से जलन है फिर यह सवाल तो छोड़ देना चाहिए । फिलहाल ऐसी गुंजाइश भी नही लगती है कि इस विधेयक को पास किया जा सकता है ।
आखिर कहीं न कही महिलाएं भी इसके लिए दोषी है । अपनी आजादी के लिए उसे भी खड़ा होना होगा ।
11 comments:
sampuran visva dekh chuka sakti tumhare naritva ki
naari ab to tum jaago bhay aur aah ko tyago
aapka vislesan achcha laga . rajnetao me bill pass karane ki ichcha sakti nahi hai. ab mahilao ko khud hi pahal karni hogi
और भी ताकतवर महिलाए राजनीति में हैं जो अपनी हैसियत का हवाला देती रही है और अपने को मजबूत कर भी दिखाया है । फिर क्या इन महिलाओं ने महिला विधेयक के लिए कोई बुंलंद आवाज लगाई है । कोई बहस छेड़ा है...किसी आन्दोलन के लिए तैयार हुयी है। अगर नही तो फिर यह आरोप भी निराधार है ....
बहुत सच्ची बात कही है आपने...सच्ची और अच्छी....
नीरज
Bahut sahi bat kahi aapne..
फिर क्या इन महिलाओं ने महिला विधेयक के लिए कोई बुंलंद आवाज लगाई है । कोई बहस छेड़ा है...किसी आन्दोलन के लिए तैयार हुयी है। अगर नही तो फिर यह आरोप भी निराधार है .... और न ही पुरूषों का हवाला दिया जाना चाहिए । अगर महिलाओं को महिलाओं से जलन है फिर यह सवाल तो छोड़ देना चाहिए । फिलहाल ऐसी गुंजाइश भी नही लगती है कि इस विधेयक को पास किया जा सकता है ।
आखिर कहीं न कही महिलाएं भी इसके लिए दोषी है । अपनी आजादी के लिए उसे भी खड़ा होना होगा ....har bar yahi kaha jata raha hai apni aajadi ke liye mahilaon ko khud khda hona hoga..., pr kisi sthan pr aakar wo majboor ho jati hain ye ek bahas ka mudda hai... haan ye sach hai ki mahila hi mahila ki dosi hai ...!!
mahila...
is vivad me jana kam se kam main nahi chahta..jo likha vo ek vichaarvaan hone ka sanket he..aapki lekhni pushth he.aour me chahta hu jis duniya me aap kadam rakh rahe he vnha aapki lekhni ko log pahchane..
jis mudde ko aapne uthaya ye thik vese mudde he jo rajniti ke liye chvyanpraash ka kaam karte he aour ham lekhako ke liye apni dukaandaari..baki natiza hamesha sifar hi aataa he..
Aapka lekh sochne ko majboor karta hai.
लेख की आखिरी दो पंक्तियाँ - बिलकुल सत्य है जब नारी ही अपने अधिकारों के प्रति सचेत नहीं और वो भी सत्तासीन नारी --तो प्फिर पुरुष प्रधान समाज से क्या उम्मीद की जा सकती है -आपके लेख में बहुत ही कमाल की विचारात्मकता है -एक चिंता का विषय भी है , जैसा की किसी पूर्व पाठक ने कहा है की यह लेख बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता है एक दम सही है
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मुबारक हो आपको
होली का त्यौहार
Regards
होली की ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ...
mahila vidheyak jis tarah raajniti ka akhaada ban gaya hai usase lagata hai ki near future me paass hone waala nahi hai. aap mere blog par aaye ...thanks
धीरज जी /आप बहुत परिश्रम करते हैं
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