Saturday, April 4, 2009

जनता की सेवा के लिए नेता या अपने जेब भरने के लिए नेता

हम कहां पहुंच गए है शायद हमें खुद पता नही है॥कभी सोचा नही गया था कि राजनीति को इस कदर व्यवसाय में बदल दिया जाएगा॥और इस व्यवसाय में भी इस तरह के व्यवसायी शामिल हो जाएगे जिनके नाम पर इतने सारे जुमॻ और मामले होगे...जिनका नाम हत्या,बलात्कार और देश के ईमानदार अफसरों की मौत में संलिप्त होगा । पैसा कमाना जिसका मुख्य धमॻ-कमॻ हो॥बंदूक जिसका ईमान हो । शायद भगत सिंह ने ही एक बार कहा था कि सत्ता बंदूक की नली से निकलती है॥भगत सिंह ने जिस तजॻ पर सत्ता को ंबंदूक की नली से निकलते बतलाया था...क्या उसका सही अथॻ यही है । सच मायने में खुद अगर अपने दिल से सवाल किया जाए कि आज के लोकतंत्र में चुनाव के क्या मायने हैं तो बहुत सारी चीजें सामने आ जाती है । चुनाव लड़ने का मतलब पैसे कमाना भर रह गया है...क्योकि ऐसी भी अब बात नही है कि जनता गलत या सही प्रत्याशी के बारे में समझती नही है । फिर लोकतंत्र को इस तरह से तार-तार किया जा रहा है फिर भी जनता खामोश क्यो है॥और अपने ॿेत्र में उस तरह के प्रत्याशी को मुहतोर जबाब क्यो नही देसबक सिखाने के लिए तो एक वोट ही काफी है फिर इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप निराधार नही लगता है कि यहां से एक ताकतवर या क्रिमिनल नेता चुनाव जीत कर आया है । आखिर इन नेताओं का चुनाव में जीतना कैसे संभव होता है...अपनी ताकत से या जनता के वोट से । अगर अपनी ताकत से तो लोकतंत्र हार रहा है अगर जनता की वोट से तो भी लोकतंत्र कमजोर हुआ है । फिर सवाल यह है कि आखिर कौन सी शक्तियां है जो लोकतंत्र को कमजोर और मजबूत बनाती है॥जो अभी भी अपने होने और न होने का अहसास कराती है। राजनीति का मतलब चुनाव से होता है । ऐसे चुनाव से जिसमें आम जनता अपने हिसाब से नेता का चयन करती है । जनता के आम राय से चयनित नेता जनता के प्रति वफादार होती है । ऐस ेशासन तंत्र का निमाॻण होता है जिसका मतलब जनता का शासन,जनता के द्वारा शासन और जनता के लिए शासन होता है । अब्राहम लिंकन का ये कथन शायद अब हमारे लोकतंत्र की गरिमा को चोट पहुंचाता है॥उसे लहुलुहान करता है । देश का सियासत इस कदर तैयार हो रहा है जिसमें सियासतदान चुनाव जीतने के मकसद से सारी हदों को पार कर जाता है...मजहब होता है चुनाव जीतना और सरकार बनाना । संजय दत्त को आयोग का नोटिस जाता है कि आप चुनाव नही लड़ सकते है । विहार में पप्पु यादव,सूरजभान सिंह और शाहबुद्दीन सरीखे ऐसे नेता है जो संसद की शोभा बढ़ा चुके है और अपना कायॻकाल भी पूरा कर चुके है । लेकिन इस बार के आयोग और न्यायालय के रवैये ने उन्हे चुनाव से दुर रखने का फैसला किया है । और ये नेता अब अपनी किस्मत का आजमाइश अपनी पत्नि के भरोसे कर रहे है उन्हे पता है कि पत्नि भी जीत जाये तो उनके शाही अंदाज और अदालती फरमानों से थोड़ी राहत जरूर मिलेगी और जनता के बीच अपना रसुख भी बना रहेगा । मकसद जनता की सेवा कतई नही है॥जनता की सेवा केवल संसद तक पहुंचने से नही होता है । बिना संसद भवन पहुंचे ही बहुत ऐसे शख्सियत है जो जनता की सेवा कर चुके है और कई पुरस्कर भी जीत चुके है और इतिहास में उनका नाम भी सादर अच्छरों में लिखा गया है॥उनकी निःस्वाथॻ सेवा मिशाल बन गई है । फिर चुनाव के आ जाने से यह सवाल जरूर उठता है कि जो नेता जनता के प्रति वफादार नही वे कैसे चुनाव जीत जाते है॥आखिर जनती ही तो उन्हे चुनती है । विहार का सिवान डाँ राजेन्दॺ प्रसाद के चुनाव ॿेत्र के नाम से जाना जाता था आज बाहुबली शाहबुद्दीन के नाम है...हिन्दुस्तान में मास्को के नाम से मशहूर बलिया लोकसभा ने सूरजभान जैसे प्रत्याशी को जीतकर भिजाया जिस पर सैकड़ो मुकदमें दजॻ है..संजय दत्त सजायाफता रह चुके है और उनका नाम मुम्बई बम विस्फोट जैसे संगीन मामलो में संलिप्त है...पोरबंदर को अब राष्टॺपिता महात्मा गांधी के जन्मस्थान और उनके सत्याग्रह से अधिक माफिया सरगना संतोखबेन जडेजा के नाम से जाना जाता है । चम्पारण भले गांधीजी की कमॻभूमि रही हो आज साधुयादव के काले कारनामो से जाना जाता है । वाराणसी,काशी और अय़ोध्या की धरती अब पवित्र नही रही इससे अधिक अब वह गुंडे और बदमाशो के लिए जाना जाता है इलाहाबाद नेहरू और लोहिया बच्चन के लिए नही बल्कि माफिया सरगना अतीक अहमद के नाम से जाना जाता है...सवाल यह है कि यह स्थिति आखिर कहां से आई है...जनता के अधिकार से या बाहुबली के अधिकार से । वोट देते वक्त हमे ंयही सोचना है क्योकि सूची इतनी भर नही है हकीकत यह है कि ज्यो-ज्यो राजनीति में विचार कमजोर पड़ते गए..अंदरूनी लोकतंत्र ग्याब होता गया और मूल्यो और सिध्दांतों का नेतृत्व हासिये पर चला गया । परिणाम यह हुआ कि राजनीति में आपराधिक तत्वों की भागीदारी और भूमिका बढ़ती गई और एक वगॻ इससे अपना रिस्ता दूर करता चला गया । अंत यहा तक आ पहुंचा कि इसमें ईमानदार लोग दूर-दूर तक दिखाई नही देते । समय के साथ-साथ इसका मतलब भी बदलता गया । आज राजनेता का असली अथॻ बााहुबली होना होता है...जनता का प्रतिनिधि नही... जनता का सेवक तो कतई नही...हमें वोट के वक्त यही सोचना है ।

10 comments:

राज भाटिय़ा said...

भाई बहुत ही अच्छी तरह से अप ने गिन गिन कर इन कुत्तो के नाम गिनबाये है, लेकिन मै फ़िर भी हेरान हुं जब सब को पता है इन के कारनामे तो यह केसे बार बार जीत कर आते है, ओर अगर यही हाल रहा तो १०, २० साल मे भारत को वो दिन देखना पडेगा जो हम सब सोच भी नही सकते? क्या हम ओर हमारे बच्चे इसी लिये इतना पढते है मेहनत करते है कि इन गुंडे मवालियो के आगे हाथ जोड कर खडॆ रहे??
धन्यवाद

अमिताभ श्रीवास्तव said...

sach batau, is desh ki 65 feesdi janta ko gyaanvardhak baato se koi lena dena nahi he..unhe to yah bhi nahi maaloom ki hame vot kyo dena chahiye..,
tumhara lekh nissandeh behtreen aour marm par chot karne vala he..kintu afsos yahi hota he ki neta ke arth aour vot ki fikra lekar bahut kam log booth par jaate he..
yadi vakai hame thos parivartan chahiye to iske liye gharo se baahar nikalna hoga..
tab tak neta not bharta rahega aour janta chot khaati rahegi..
saadhuvaad achchi rachna ke liye.

hem pandey said...

इसी तरह लगातार गुस्सा उतारने का लाभ शायद अगले कुछ चुनावों के बाद मिल जाए. फिलहाल तो ऐसे ही लोगों से भरी अगली लोकसभा के लिए तैयार रहें.

Harshvardhan said...

chunavo ki sahi nabj pakdi hai aapne rajeev bhai ... post achchi lagi.. shukria

mark rai said...

jeb nahi bharege to swiss bank ka kya hoga ...ab to dar bhi hai ki wo paisa kahi janta ke haath n lag jaye ...

Mumukshh Ki Rachanain said...

"जनता की सेवा के लिए नेता या अपने जेब भरने के लिए नेता"

जाहिर तौर पर अपनी जेब भरने के ही लिए.

आज के आर्थिक युग में जबकि चैरिटी शो भी चैरिटी न होकर आमदनी का जरिए हो गए तो राजनीति में सेवा भाव खोजना बेवकूफी ही है.

आदमी सांसद बनने के लिए आखिर इतना पैसा खर्च ही क्यों करता है, सेवक बनने के लिए पैसे की नहीं भाव की डरकर होती है और आज इसी भाव का तो आभाव है.

जनसेवक, जनसेवक न रह कर तुरत -फुरत मंत्री ही बनना चाहता है ...............सेवकई गयी भाड़ में.


बढ़िया लेख पर बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त

seema gupta said...

जनता की सेवा के लिए नेता या अपने जेब भरने के लिए नेता"

"very well expressed.....truth..."

Regards

Harshvardhan said...

dheeraj bhai kuch naya daliye.....

हरकीरत ' हीर' said...

धीरज जी,
दुःख तो इसी बात का है कि उसने नाम तक देना उचित नहीं समझा सायद आपने पोस्ट अच्छी तरह पढ़ी नहीं ...!!

shama said...

Bohot achha likha hai... Indian Evidence Act 25/27 ke tehet, aatankwadkee parshwbhoomeepe maine apne "Kahanee" blogpe, qaanoonkee maloomaat dete hue
"Kab hoga ant",sheershak tale ek katha likhee hai..samay ho to zaroor padhen...
shubhkamnayonsahit
shama