लोकसभा चुनाव की सरगमी तेज हो चली है । सभी सियासी दल मतदाताओं को रिझाने में लगे है । वोट केवल मुद्दा रह गया है । विकास का जो खांका देश में खीचा गया था वह हाशिये पर चला गया है सभी अपनी डफली बजाने को तैयार है...लेकिन इसके बीच लोकतंत्र के लिए सबसे बुड़ी खबर यह है कि लोकतंत्र में जो मुददे सामने आने चाहिए थे उन मुद्दो से न तो प्रत्याशी को और न ही जनता को किसी तरह का मतलब रह गया है ...वो वायदे हाशिये पर चले गए...जो चीजे सामने नही आने चाहिए थी वही मुख्य चुनावी डोर बन गई । जिसे लेकर लगाम की तरह खीचने की होड़ हर सियासी दलो में लगी हुई है ।
मसलन 15 लोकसभा चुनाव बिना किसी मुददे के लड़ा जा रहा है । भाजपा शुरूआत से किसी जानदार मुददे को तराश रही थी जिससे पूरे देश में शोर-शराबा हो...माहौल बिगड़े और जनता का रूझान किसी न किसी तरह उसके पॿ में जाये । इसलिए राम से लेकर अय़ोध्या में मन्दिर मनाने के हर वायदे को चुनावी फलसफा वनाकर तैयार करने की कोशिश की गई । फिर भी कोई हवा न मिली तो बरूण को एक सियासत के तहत जहर उगलने के लिए तैयार किया गया । पीलीभीत की जनता ने उकसावे में आकर तोड़-फोड़ सहित तमाम नाटक किए जिसकी स्क्रिप्ट संध और भाजपा के मदद से तैयार की गई थी । बरूण पर रासुका लगाा और साल भर तक बेल नही मिलने का फरमान भी आया । कहने का मतलब कि किसी न किसी बहाने भाजपा अपने रास्ते पर देर-सबेर चली आई । जिसकी तालाश उसे थी ।
सेक्युलर पाटिॻया भी कहां कम है । विकास के मुद्दे से अधिक ये दल अपनी टोपी दिखाने में वक्त जाया करती है । मुझे नही लगता है कि इन नेताओ को लाल टोपी से ज्यादा कोई सरोकार है लेकिन मुसलमानो का वोट जो लेना है इसलिए किसी जनसभा में इसके बिना पहुंच ही नही सकते...यही तो सेक्युलर होने की पहचान है । इसलिए तो कोई ऐसा दल नही है जो इन्हे रिझाने का जुगत नही करता है । भला भाजपा के धमॻध्वजधारी के साथ समझौता ही क्यो न हो...बाबरी मस्जिद गिराने के हीरो के साथ आपसी तालमेल क्यो न हो लेकिन ये टोपी लगी रहनी चाहिए । सियासी जुगत अपनी जगह है ।
तीसरे मोचेॻ की क्या रणनीति है । किस आधार पर जनता को अपनी तरफ खीच रहे है । है कोई मुद्दा...परमाणु डील के विरोध में क्रांग्रेस से अपना नाता तोड़ा था क्या इस बार कांग्रेस का साथ नही निभाएगे । गठबंधन में शामिल नही होकर क्या विपॿ की भूमिका में होगे या संशोधनवाद की तजॻ पर और पाटीॻ से तालमेल करेगे । मुद्दे कुछ भी नही है...सिंगुर का मामला दफन हो चुका है । नैनो गुजरात में तैयार हो रही है॥ममता की गली में बामपंथ की खोज चल रही है...ऐसा ही हाल केरल में भी है। अन्य राज्यो में तो किसान मजदूर हैं ही नही॥फिर ये किस आधार पर जनता से वोट मांग रहे है।
दाल रोटी हर दल की अपने प्रदेश में चल रही है । गठबंधन की राजनीति ने दिल्ली का दरवाजा हर दल को दिखला दिया है । इसमें कोई कमजोर नही है । चार सांसदो को जितवाकर मंत्री का पद आराम से ले सकते है । बस मोल-भाव की कला होनी चाहिए । इसीलिए तो कोई दल किसी तरह का कसर नही छोड़ना चाहती है...यही तो सियासत है ।
बाक युध्द शुरू हो चुका है । कांग्रेस बूढी दिख रही है और भाजपा युवा॥हर कोई अपने को नौजवान दिखाने की जुगत में है॥कोई युवाओ का हृदय सम्राट बनना चाहता है तो कोई हिन्दुओं का हृदय सम्राट । सबके अपने-अपने चादर है जिसमें वो मतदाताओं को गोलबंद कर रखना चाहते है । इस वाकयुध्द में न तो किसी के बोल का कोई मोल है और न ही इसकी कद्र । बस लोगों का दिल जीतना है । अभी रोलर चलने और कानून की हथकड़ी डलवाने में कोई परहेज नही है । चुनाव की ही तो बात है फिर तो एक ही सिक्के के दो भाग होकर रहना है ।
जय श्रीराम
10 years ago
7 comments:
अभी हम सच्चे लोकतंत्र से कोसों दूर हैं. चुनाव केवल सत्तासीनों के कुछ चेहरे बदलने का काम सफलतापूर्वक कर रहे हैं.
dheeraj ji vote ke mausam me sabhi janta ki baat karte rahte hai... phir jeetne ke baad unki koi sudh nahi le pata hai... is baar bhi yahi ho raha hai.. muddhe gayab hai ek doosare par cheetakasi ka khel chal raha hai...
aapki yah post achchi hai... chgunavo par likhte rahiye.. mere blog par aakar aap chunavi yatra ka maja le sakte hai....
लोकसभा चुनाव बिना किसी मुददे के लड़ा जा रहा है....sahi kaha abhi tak dekhne se aisa hi lag raha hai ...aage kya hota hai dekhna baaki hai
mudda sirf yahi hota he ki hame chunaav ladna he..baaki baate fizul hoti he..loktantra shayad yahi ho gaya he..
jaha tak janta ki baat he to mera mananaa he janta ko matlab rahta he..agar jo chij parosi jaati he use khaa rahi he..ye thik vesa he ki filme achchi banana chahiye magar nahi banti maga janta to dekhti hi he naa....
इस वाकयुध्द में न तो किसी के बोल का कोई मोल है और न ही इसकी कद्र । बस लोगों का दिल जीतना है । अभी रोलर चलने और कानून की हथकड़ी डलवाने में कोई परहेज नही है । चुनाव की ही तो बात है फिर तो एक ही सिक्के के दो भाग होकर रहना है ....
सही कहा आपने ....जब तक सत्ता हाथ में नहीं आती हर तरह का प्रलोभन दिया जाता है .....कुर्सी मिलते ही वह इंसान से नेता बन जाता है फिर वादे कहाँ से याद रहेगें.....!!
लोकतंत्र के लिए सबसे बुड़ी खबर यह है कि लोकतंत्र में जो मुददे सामने आने चाहिए थे उन मुद्दो से न तो प्रत्याशी को और न ही जनता को किसी तरह का मतलब रह गया है ...वो वायदे हाशिये पर चले गए...जो चीजे सामने नही आने चाहिए थी वही मुख्य चुनावी डोर बन गई ।
Bilkul sahmat hoon aapki baat se.
सही है भैया ऐसी भाषा तो आम ग्रामीण तक प्रयोग नहीं करते /आपने सब पार्टियों की कलई खोलदी /शीर्षक भी बहुत बढ़िया दिया है /पहले तो ब्लॉग खोलते है में समझा की बड़ा की जगह लड़ा गलत टाईप हो गया होगा /फिर समंदर में गोता लगाया तब शीर्षक की असलियत मालूम हुई
Post a Comment